tag:blogger.com,1999:blog-46851713629438136182024-03-13T22:44:27.518-07:00मनसुख का संसारसुख कि दुनिया मन के बाहर नहीं मन के अंदर है , इसलिए वो मनसुख है। एक किंचित प्रयास, चेहरे पर कब्जे कि ताक में बैठे तनाव कि रेखा को हतोत्साहित कर मन को गुदगुदाने का, जिसका दर्प चेहरे पर उभर आये.......कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.comBlogger22125tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-90343229931009719192023-06-17T07:29:00.000-07:002023-06-17T07:29:00.330-07:00आदिपुरुष...!!<p style="text-align: justify;"> मैं इसके इंतजार में था की फ़िल्म रिलीन हो और देखे। सप्ताहांत में मौका भी था। सामान्यतः फ़िल्म की समीक्षा फ़िल्म देखने से पहले न देखता हूँ और न सुनना पसंद है। किंतु पता नही कितने फिल्मों के बाद ऐसा हुआ है कि सोसल मीडिया पर जहां भी जा रहा हूँ, यही फिल्म छाया हुआ दिख रहा है। </p><p style="text-align: justify;"> बहुत दिनों के बाद ऐसा हुआ है कि फ़िल्म अपने टीजर के साथ-साथ रिलीज होते ही जैसे सबको मंत्र मुग्ध कर दिया है। हर कोई फ़िल्म निर्देशक और पटकथा लेखक की जमकर कसीदे गढ़ रहा है। वैसे तो कथा पहले से ही मौजूद था सिर्फ संवाद पर उन्होंने अपना पसीना बहाया है। पसीने से लिपटे संवाद में लवण की मात्रा तो आना ही था और बॉलीबुड इस मामले में पहले से ही नमकीन है। </p><p style="text-align: justify;"> फ़िल्म निर्माता-निर्देशक के मेहनत का अंदाज आप लगाइए, कैसे उन्होंने मशक्कत करके युगों के फासले को पाट दिया। दर्शक तो इसी से भाव-विभोर लग रहे है, जब उनको अनुमान था कि वो त्रेता की पृष्ठभूमि रचेंगे। लेकिन उनकी खुशी और आश्चर्य का ठिकाना नही रहा जब उन्होंने देखा कि अरे कलयुगी भी क्या कहे, बिल्कुल बॉलीबुडी-युगी के धरातल पर कथानक और संवाद को पिरो दिया है। कितना दुष्कर कार्य है और वो भी इस वर्तमान दौर में जब कोई कब आहत हो जाए, हमे पता ही नही चलता। रचनाकार वाकई बधाई के पात्र है कि उन्होंने आहत और अनाहत के बीच के माध्यम मार्ग रचा है।अब देखे आगे इसपर कौन चलता है। खैर..फ़िल्म की बात।</p><p style="text-align: justify;"> यह देख और पढ़-सुनकर इन महान कला के विभूतियों के प्रति मेरा मन श्रद्धा से भर गया। आखिर किसी के मूल रूप का अनुकृति भी कोई "क्रिएटिविटी" होती है। "क्रिएटिविटी" तो वो है जो "आदिपुरुष" के साथ वर्तमान के इन कला-महापुरुषों ने किया है। ताकि देखते ही आपका मष्तिष्क सृजनशील होकर इस विश्लेषण में लग जाये कि आखिर "आदिपुरुष" वाकई "राम-गाथा" है या कुछ और..! और जो आपके विचारों को झकझोर कर रख दे वही तो असली सृजन है।साथ ही साथ यह विश्लेषण आपको आनंदित करके रख देगा और आपको आनंदमय कर दे, यही तो निर्देशक का धर्म है। </p><p style="text-align: justify;"> आप बेशक इन बॉलीवुड के सृजनशील उद्द्मियो पर प्रश्नचिन्ह लगाए, लेकिन मैं तो इनको मन ही मन नमन करता हूँ।इस "कलात्मक-सृजनात्मकता" की पराकाष्ठा का अनुमान तो मैं इसी बात से लगा लिया कि दो-चार लाइन पढ़ते ही पूरा फ़िल्म आंखों के सामने चलने लगा।</p><p style="text-align: justify;"> इससे पहले की दो चार लाइन इनके गुणगान स्वरूप मैं कुछ और लिखता , तभी किसी कोने से मेरे कान में जैसे ये आवाज गूंजने लगा-" पैसा मेरा, निर्देशन मेरा, कलाकार और वीएफएक्स भी मेरा और बजेगा भी मेरा"....तुझको क्या.? तो कैसी लगी..!</p><p style="text-align: justify;"> अब बीड़ू भाई तुम ही जानो, अपुन तो अब तक देखा नही है....!</p>कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-13780990151653278972020-01-20T04:17:00.000-08:002020-01-20T04:17:00.479-08:00नए अध्यक्ष..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
जब प्रधानमंत्रीजी छात्रों को परीक्षा के टिप्स बांट रहे थे उस समय नड्डा जी अध्यक्ष के छात्र रूप में चुन लिए गए। परीक्षा तो अब इनकी कक्षा में कई होने लेकिन अगला पेपर बहुत जल्दी दिल्ली में होने वाला है। इनकी तैयारी का जायजा उसके बाद ही लिया जाएगा। कल आज और कल के कई मार्गदर्शक अलग अलग भाव भंगिमा में लिए नए अध्यक्ष को शुभकामनाएं देने कर्तव्यानुसार उपस्थित हो गए। नड्डा जी वैसे तो हिमाचली है लेकिन बिहारीपन ज्यादा है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
वैसे नड्डा जी ने अपना भाषण समाप्त करते हुए सिर्फ "जय भारत" का उद्घोष किया। जबकि उनके पूर्ववर्ती सदा की भांति भारत माता की जय और अंत मे वंदे मातरम के साथ अपना उद्घोष समाप्त किया। नड्डा जी की इस "जय भारत" सांकेतिक उद्घोषणा सामान्य माना जाय या अपने कार्यकाल में वो पार्टी के सिलेबस में कोई बदलाव की तैयारी है।इस पर राजनीतिक विश्लेषक चिंतन की नई लकीर खिंच सकते है।</div>
<div style="text-align: justify;">
वैसे उनके पूर्ववर्ती ने जो लकीर खिंच दी है,उससे बड़ी लकीर खीचना वाकई में नड्डा जी के लिए एक दुरूह कार्य होगा। लेकिन अब जब उन्होंने ये दायित्व लिया है तो अवश्य उसके लिए प्रयत्नशील रहेंगे।...नड्डा जी को अध्यक्ष चुने जाने पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।।</div>
</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-90436995110641755732020-01-19T06:52:00.000-08:002020-01-19T07:01:56.429-08:00नागरिकता और विरोध<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
मनसुख अघाया-अघाया से दालान के बाहर सुख रहे पुवाल पर लेटा है। सुबह के काम से फारिग हो रखा है। हाथ मे कोई अखबार का पन्ना है। मनसुख पढ़ने में लगा है। सदा की भांति कक्का वही कोने में बैठ कर ऊपर निखर आई धूप में बदन सेकने में लगे है। हाथ मे शायद खैनी को मसलने में लगे है।संक्रांति बीत गया है। कुछ दिनों में सूर्य धुंध की चादर में लिपट कर नई-नवेली दुल्हन जैसे घूंघट में चेहरा छुपा कर रखती है।वैसे ही मुँह छिपा कर अस्त हो जाता था। लेकिन अब इन सबसे जैसे विद्रोह कर दिया है। अब तो भोर हुई नही की लाल-लाल घूंघट उठाकर सूर्य ने चहलकदमी शुरू कर दिया। उस ताप का मजा मनसुख और कक्का दोनों ले रहे है। मनसुख को अखबार पढ़ता देख कक्का बोले-का रे आज का अखबार है का। कोनो खास खबर है..?मनसुख जैसे हल्के से सुरूर में था। कहते है इस ऋतु में सूरज का ताप से शरीर मे नशा चढ़ता है और आंख भी भसियाने लगता है। मनसुख भी जैसे किसी खुमारी से जगा और बोला- नही कक्का, काले का अखबार है।बस ऐसे ही पढ़ रहे है।</div>
<div style="text-align: justify;">
कक्का- तो कल के अखबार में ऐसा का लिखा है कि नजर तब से वोही में गड़ाये रखे हो।</div>
<div style="text-align: justify;">
मनसुख- कक्का अखबार में लिखा है कि अब सरकार कोई रजिस्टर खोलने जा रहा है। उसमें सबको अपना नाम-पता लिखवाना है। फिर सरकार कुछ देश के नागरिकों को यहां पर नागरिकता भी देगी। इस सबका का विरोध जनता कर रही है।दिल्ली के एक विश्वविद्यालय में कुछ छात्रों ने आगजनी और हिंसा भी किया है।</div>
<div style="text-align: justify;">
कक्का- इसमे का नया बात है, हर बार तो उ स्कूल के मास्टरजी जनगणना में हम सबका नाम-पता भर के ले ही जाते है। तो इसमें नया क्या है?</div>
<div style="text-align: justify;">
मनसुख- कुछ लोगो का कहना है कि सरकार ई सब करके पता करेगी कि कौन यहां का नागरिक है और कौन नही। फिर जो यहां का नही होगा उसका क्या...?</div>
<div style="text-align: justify;">
कक्का- तो जो यहाँ का नही है, वो सब विरोध कर रहे है।</div>
<div style="text-align: justify;">
मनसुख-अरे कक्का जनता सब यहीं की है, उनको डर है कि सरकार इस बहाने कुछ लोगो को नागरिक नही मानेगी तब, अगर उसके पास कोई पहचान पत्र नही हुई तो...।मनसुख जैसे विरोध करने वालो से सहमत दिख रहा था।लेकिन कक्का को इस कानून में अपनी समझ से कुछ नया नही दिख रहा था।</div>
<div style="text-align: justify;">
कक्का-देख बेटा, जिसकी ये माँ, ये मिट्टी है उसको किस बात का डर है। हां, जिसको मिट्टी का सौदा करना है उसको हो सकता है, डर लग रहा हो। फिर बेटा ये विरोध कहा गाँव मे भी हो रहा है।</div>
<div style="text-align: justify;">
मनसुख- नही कक्का ये सब विरोध में शहरों में हो रहा है। पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी सब इसमे शामिल हो रहे है।मनसुख कुछ-कुछ सोचने की मुद्रा में आ गया।</div>
<div style="text-align: justify;">
कक्का ने अब तक खैनी को रगड़ कर दो थाप मारा और चुटकियों में दबा कर उसे ओंठों में दबा कर दार्शनिक मुद्रा में बोलने लगे- इसका मतलब है बेटा गाँव मे पढ़े-लिखे समझदार नही है क्या..?उनको विरोध करने को क्या किसी ने थोड़े ही रोका है। ये शहर वाले जिसको तुम पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी बता रहे हो न, वो पढ़े लिखे होते तो अपने ही शहर को जलाएंगे। ये कुछ और नही बस जब पढ़े-लिखे मूढ़ है।वैसे बुद्धिजीवी का आजकल तो देख रहे हो।जिनका जीव लपलपाना बुद्धि के अनुरूप बढ़ता है। वैसे ही बुद्धिजीवी भरे पड़े है।इनका का है। बाकी पार्टी सब ताके में रहते है।विरोध के लिये विरोध करना तो अपने यहाँ फैशन है।नागरिक अपने नागरिक होने से डरने लगे तो मिट्टी की निष्ठा संदिग्ध है। फिर कक्का अचानक रुक गए और मनसुख से पूछा- अरे हमरे वाला वोट पहचान पत्र जो पिछले बाढ़ में गुम हो गया था, वो बना की नही..?</div>
<div style="text-align: justify;">
मनसुख ने कहा- कक्का उसके लिए ब्लॉक में आवेदन दिए है, बताया कि जब बनेगा तो बताया जाएगा।</div>
<div style="text-align: justify;">
कक्का- बेटा ये कागज के पहचान पत्र सरकारी कवायद के लिए बेशक ठीक हो,क्योंकि सरकारी काम तो चलने है। लेकिन सिर्फ कोई कागज का टुकड़ा किसी की पहचान उसकी मिट्टी से थोड़े ही छीन सकता है। कहते-कहते जैसे कक्का भूत में खो गए, जबकि मनसुख उस भूत और वर्तमान के मध्य उभर आये कई अन-गढ़ी तस्वीर तैरने लगे।</div>
</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-50947672017972562452018-08-03T09:20:00.000-07:002018-08-03T09:20:06.825-07:00कुल्लड़ में चाय ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
बात ईसा पूर्व की है...लगभग 2700 वर्ष...। चीन के सम्राट के हाथ मे गर्म पानी का प्याला था और मचलती हवाओ ने कुछ पत्तो को अपने संग लाया और उसे सम्राट के प्याले में डुबो दिया। पर सूखे पत्ते की गुस्ताखियां देख जब तक सम्राट अपने चेहरे का रंग बदलता गर्म पानी ने अपना रंगत बदल दिया और वाष्प ने अपने संग विशेष खुसबू से सम्राट को आनंदित कर दिया। एक चुस्की पीते ही वह समझ गया कि वह भविष्य के लिए एक और पेय पहचान लिया है और फिर चीन से पूरी दुनिया में फैल गया।</div>
<div style="text-align: justify;">
भारत मे जैसे हर चीजे अंग्रेजो की देन मानी जाती है वैसे ही यह पेय भी उन्ही का देन माना जाता है....उससे पूर्व असमी जो पत्तियों को खौला कर पेय बनाते थे उसे क्या कहा जाय पता नही....?जब तक आप किसी भी चीज का व्यवसायिक दोहन नही करते है तो मुफ्त तो मुफ्त होता है। तो अंग्रेजो ने इसका व्यवसायिक दोहन कर इसके साथ अपना नाम जोड़ लिया ।</div>
<div style="text-align: justify;">
उस समय इसे जो भी कहते पता नही....लेकिन आजकल इसे "चाय" कहते है। बाकी तो आप सभी इससे परिचित है। इसमें खास कुछ नही है.....बस आज सुबह-सुबह कुल्लड़ में चाय चाय मिल गई..।। अब कुल्लड़ धीरे-धीरे विलुप्त ही होता जा रहा है। एक बार तत्कालीन रेल मंत्री ने 2004 में ट्रेन में मिट्टी के कुल्लड़ चलाया भी लेकिन कुछ सालों बाद मंत्रीजी का राजनैतिक जीवन मिट्टी में मिल गया और आगे चलकर रेल ने भी इस मिट्टी के प्याले से किनारा कर लिया। खैर.....।।</div>
<div style="text-align: justify;">
आज सुबह-सुबह कुल्लड़ देख चाय नही जैसे कुल्लड़ ने अपनी ओर खींच लिया। प्याले में चाय भरते ही चाय ने अपनी तासीर बदली और मिट्टी की सौंधी खुसबू चाय के साथ मिलकर उसके स्वाद को एक अलग ही रंग दे दिया हैं।जो आपको किसी और कप में नही मिल सकता।</div>
<div style="text-align: justify;">
जब धरती ही स्वयं के अस्तित्व के लिए संघर्षरत दिख रही हो तो कुल्लड़ का क्या कहना..?अतः सुबह-सुबह जब सिंधु घाटी सभ्यता से यात्रा कर पहुची कुल्लड़ फिर आपके हाथ लग जाये और जो सभ्यता के मध्याह्न से प्रचलित पेय से लबालब भरा हुआ हो तो आप चाय के हर चुस्की के साथ सभ्यताओ के बदलते जायके को महसूस करने की कोशिश कर सकते है।इस एक प्याले में जब जीवन के मूलभूत पंच तत्व -थल(कुल्लड़) ,जल (चाय) पावक( इसकी गर्माहट ), गगन के तले ,समीरा(चाय का वाष्प) जब एक-एक चुस्की के साथ आप के अंदर समाहित होता है।तो आप महसूस कर सकते है कि एक प्याला कुल्लड़ से भरा चाय आपको कितने ऊर्जा से ओतप्रोत कर देता है। </div>
<div style="text-align: justify;">
जगह और स्थान कोई भी हो मिट्टी में बिखरे आनंद को ढूंढे ...नाहक क्षणों को मिट्टी में न मिलाये।सभ्यता के आदिम रूप जहां बिखरे है वही सभ्यता के भविष्य का रूप है..ये आप समझ ले।तो फिर एक प्याला चाय कुल्लड़ में मिल जाये तो भूत और भविष्य एक साथ एकाकार हो जाते है और ये सर्वोत्तम आनंद का क्षण है....एक कप कुल्लड़ में चाय... है कि नही??</div>
<div style="text-align: justify;">
अंत मे हरिवंश राय बच्चन की "प्याला" शीर्षक कविता की दो पंक्तियां-</div>
<div style="text-align: justify;">
मिट्टी का तन,मस्ती का मन,</div>
<div style="text-align: justify;">
क्षण भर जीवन-मेरा परिचय !</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-87632990690803178682018-06-19T20:39:00.000-07:002018-06-19T20:39:59.718-07:00...ओ मेरी महबूबा...।।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मनसुख आज तैश में था। गर्मी की उफान उसके चेहरे पर उभर उभर कर आने वाले पसीनो के बूंदों में झलक रहा था। वह कुट्टी काटने वाली मशीन को जोर जोर से घुमा रहा था। बीच बीच मे वह घास की बंडल मशीन में डालते समय रह रह कर पसीने पोछता और गुनगुनाता-- महबूबा...महबूबा...ओ मेरी महबूबा<br />
काका वही बगल में पेड़ की छाया में दोपहरी से लड़ने के लिए लेटे हुए है।<br />
काका-का रे मनसुख ई मेहरारू के काहे इस दोपहरिया में याद कर रहा है...<br />
मनसुख झेप गया। न काका वो तो हम महबूबा के बात कर रहे है।<br />
काका- अरे अब कोनो दोसर मेहरारू तो नही ले आये।<br />
मनसुख- का काका तू भी बुराड़ी में अंट-शंट बकते रहते हो। तुमको कुछो देश दुनिया का पता रहेगा तब न समझोगे।<br />
काका- का रे अब ऐसा का हो गया<br />
मनसुख- कश्मीर में महबूबा की सरकार गिर गई है तुमको कुछो पता है।<br />
काका के चेहरे पर मंद मुस्कुराहट उभर गया और बोला- उ तो हम पहले ही बोले थे कि ई साँप-छुछुन्दर एके बिल में कब तक रहेगा। तब तो तू बाद खुश होकर बता रहा था कि अब कश्मीर फिर से स्वर्ग बन जायेगा।ई सरकार बड़ा सोच समझ के कुछ करती है। फिर का हुआ अचानक की भाग गए कश्मीर से।<br />
मनसुख- देखो काका ई सब राजनीति की बात है...तुमको समझ नही आवेगा।<br />
काका-यही तो हम भी कह रहे है कि ई सब राजनीति की बात है तू नाहक खुश हो रहा है।तू ही बता तू काहे खुश है?<br />
मनसुख-देखो काका अब कश्मीर की हालत से समझौता नही कर सकते। वहाँ अब स्थिति ज्यादा खराब हो गई है।<br />
काका-तो अब तक का खाली महबूबा...महबूबा कर के झाल बजा रहे थे। किसने रोका था कश्मीर को सुधारने से।अब तक तो लगता है यही गा रहे थे...महबूबा मेरे जो तू नही तो कुछ भी नही है...जो तू है तो कश्मीर कितनी हँसी है.....और अब अचानक..।<br />
मनसुख-काका ई कोनो बिहार की राजनीति नही है जो तुमको सीधे-सीधे समझ मे आवेगा।यहां बहुत कुछो सोचना पड़ता है। बगले में पाकिस्तान मुँह बाये खड़ा है। तुम का समझोगे..?<br />
काका- बेटा ई पाकिस्तान की झुंझना सुनते - सुनते बाल सफेद हो गए और तुमरो सरकार को देख लिया। ना कुछो मिले तो बस पाकिस्तान और धर्म खतरे में है का ढोल पिटने लगो। तुम कह रहे थे न देखना अब कैसे उग्रवादी सब दुबक जायेगे लेकिन उ सब तो वैसे निकल रहे है कि जैसे कुकुमुता का छता निकल रहा है। फिर कुचलते काहे नही। बस तुम सब ढिढोरा पीटते रहो।इससे बढ़िया तो मौनी बाबा थे कुछ तो करते होंगे बेशक कहते नही....।<br />
मनसुख-काका तुम का समझोगे सब तो वही सब का किया धरा है।<br />
काका-तो इनको मौका भी तो इसी लिए दिया था।अब न कुछ कर पाए तो बस बहाने बनाओ..।<br />
मनसुख- काका तुम कुछ भी कह लो लेकिन ई जो कुछ भी करते है सोच समझ कर करते है, देशहित पर ये समझौता नही कर सकते।<br />
काका-बेटा तुम सब यही सोचकर खुश रहो...आखिर घुट्टी जो पी रखे हो...यह तो सही है कि सोच समझ कर करते है ,लेकिन इसमें हित किसका है यह तो समय ही बताएगा। लेकिन सब तो यही कहेंगे इतने चौड़े सीने वाले को महबूबा ने पटकनी दे दी और ये पूंछ दबा कर कश्मीर से भाग गए लेकिन तुम जैसे मूढ़ तो बस अपने नशा में चूर रहो...।<br />
मनसुख को काका की इन बातों का जैसे कोई असर नही हो रहा और वह अपने धुन में गुनगुना रहा है--महबूबा....महबूबा....ओ मेरी महबूबा...।।</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-34310528483300064042018-01-02T08:09:00.000-08:002018-01-02T08:12:11.565-08:00नव वर्ष मंगलमय हो.......<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
सब कुछ यथावत रहते हुए भी , खुश होने के कारण तलाश करते रहे। बेशक आप इस बात से वाकिफ है कि कैलेंडर पर सिर्फ वर्ष नए अंकित होंगे , लेकिन वो स्याही और पेपर यथावत जो चलते आ रहे है वही रहेंगे। फिर भी एकरसता के मंझधार में फसने से बेहतर है कि इन लम्हो को ज्वार की भांति दिलो में उठने दे और कुछ नहीं तो वर्ष की पहली किरण में मंद बयार के साथ पसरी हुई ज़मीन पर ओंस के बूंदों पर झिलमिलाती किरणे प्रिज्म सदृश्य कई रंग बिखेर रहा हो उसको देख आनंदित होने की कोशिश करे। कही दूर मध्यम और ऊँची तान में कोई चिड़िया चहक रही हो तो दो मिनट रूक कर उसे मन के राग के साथ आंदोलित होने दे। उससे छिटकने वाली राग को बाढ्य नहीं अंतर्मन के संसार में गूँजने दे।</div>
<div style="text-align: justify;">
सिमटती दुनिया के एकरुपिय निखार में बहुत कुछ समतल हो गया है जहाँ ख़ुशी और अवसाद के बीच में स्पष्ट फर्क करने में भी अब कठनाई है।</div>
<div style="text-align: justify;">
हर वक्त याथर्थ के धरातल को ही टटोलना जरुरी नहीं है, कुछ पल ऐसे ही दिनों के बहाने कल्पना के सृजनलोक में विचरण कीजिये। </div>
<div style="text-align: justify;">
नव वर्ष मंगलमय हो.......</div>
</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-89292986924823269882017-11-28T02:28:00.002-08:002017-11-28T02:28:36.162-08:00मन की बात <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
फिर भी वो दांत निपोडे हँसता रहा...ही..ही..ही..।<br />
कल्ले में एक ओऱ दबाये पान मसाला के प्रोडक्ट को थूक संग समिश्रित करता, गर्दन को धीरे से घुमा कर...आक थू....। उत्पाद के रस निचोड़ने के बाद त्याज्य पदार्थ उत्सर्जित कर दिया।<br />
मनसुख को कदम पीछे हटना पर गया...।<br />
उसके बत्तीसी अब भी सतरंगी छटा बिखेर रहा था। जिसपर कालाधन के साथ साथ अन्य रंगों ने कब्ज़ा जमा लिया है। अब भी यूँ ही दांत निपोडे हुआ है।<br />
भैया आप तो बस हमें ही टोकते हो....का हो गया जो हम थोड़ी सी अपने मन की बात कह गए। सब तो अपने मन की बात कह रहे है...उन्हें तो कोई कुछ नहीं कहता। हमारे मन में तो बस इतनी बात है कि अब भावनाएं बहुत कम बच रही है सो काहे सब भावना से खेलते रहते है। और भौया सच कहूं तो कुछ काम धंधा रहे तब न ....अब खली बैठे है सो थोड़ा हम भी अपने मन की बात कर लेते है...थोड़ा टाइम पास हो जाता है...ही..ही...ही...। इस्टमेनकलर में दांत फिर से उसने दिखा दिया।<br />
देखो बेकार की बातों का कोई मतलब तोड़े ही न है...। बात मतलब की करो न....।<br />
उसने फिर केसरिया सुपारी के दो छोटे टुकड़े को जैसे अपना काम निकल जाने के बाद पार्टी साइड कर देती है, बिलकुल उसी अंदाज में बाहर फेंक कर बोला-<br />
यहाँ कौन मतलब की बात कर रहा है...। सब तो अपने ही मन की बात कर रहे है।तुम्ही बताओ भैया.....अब आलू से सोना निकलेगा इसमें का मतलब है ई का मन का बात नहीं हुआ।<br />
अरे कहा कि बात कहाँ जोर रहे हो। मनसुख उसकी बातों को समझने की कोशिश कर रहा ।<br />
अच्छा तो ई जो भंसाली साहब सेंसर बोर्ड से पहले "बुध्धु बॉक्स" के संपादक के पास पहुच गए ई का उनके मन का बात नहीं हुआ। हम तो पहले काहे थे की हमलोगों को पाहिले दिखा दो सो तो माना नहीं ।<br />
लेकिन ये भी तो हो सकता है कि वो अपनी फिल्म के प्रोमोसन के लिए ई सब कर रहा है....।<br />
तो का इससे हम सबका प्रमोसन नहीं हो रहा है...। हौले से मुस्कुराकर बोला । इस बार दांत पर होठो का बुरका लग गया।<br />
और भैया तुम नाहक काहे परेशान हो रहे हो । लोकतंत्र है....। जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए किया जाना है। देखो ऊपर से नीचे तक सब अपनी मन की बात सुना रहे है। तुम भी सुना दो अपने मन की और क्या......ही...ही....ही....।<br />
मनसुख उसकी थ्योरी को समझने के प्रयास में सर खुजाने लगा।<br />
<br /></div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-48133359959406605152017-05-11T21:39:00.000-07:002017-05-11T21:39:28.959-07:00सत्याग्रह ......<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
काका....<br />
हाँ मनसुख बोल ......।<br />
नहीं काका हम सोच रहे थे कि सब आजकल का हो रहा है अपने देश में। मनसुख सोचनीय मुद्रा में दिख रहा था।<br />
काका- का रे ऐसा का नया हो गया जो पहले नहीं हो रहा था। हमको तो सब वइसने दिख रहा है। काका ने गाय को नाद के साथ लगे खूंटे से बांधते हुए पूछा।<br />
मनसुख- नहीं काका सो तो ठीक है, लेकिन कुछो कुछो औरो हो रहा है जो तुमको या अभी नहीं पता है।<br />
काका- तुम पहले ई सब गोबर को एक जगह जमाव , अपना काम पहले ठीक से कर.....काका इस तरह मनसुख को निठ्ठला बैठा देख झिड़कते हुए कहा।<br />
फिर थोड़ा रूककर पूछा..... तो बताओ न का हो रहा है।<br />
मनसुख ने पहले तो अनसुना कर दिया शायद डांट का प्रभाव था। काका ने फिर लगभग पुचकारते हुए कहा... हाँ का बता रहा था रे .. ।<br />
मनसुख ने थोड़ा नजर सीधा कर कहा- तुको पता है आजकल दिल्ली में सत्याग्रह चल रहा है<br />
काका- का गंधजी फिर से जिंदा हो गए ...? काका के सफ़ेद मूंछ कुछ खिलने लगे।<br />
मनसुख- अरे का सत्याग्रह खाली गंधजी ही कर सकते है...। मनसुख थोड़ी तेज आवाज में चिढ़ते हुए कहकर गोबर समेटने में लग गया।<br />
काका- न हमतो ऐसे ही बोल दिए ,अच्छा छोडो बताओ कौन कर रहा है<br />
मनसुख- काका द्वापर में पांडव ने पांच गांव के लिए याचना किया था और कलयुग में पांच सवाल के जबाब के लिए सत्याग्रह किया जा रहा है। ये कहानी रामायण महाभारत मनसुख बचपन से ही काका के मुख से सुनता आया है।<br />
काका- ई पांडव कौन है? आजकल होने लगे है कि...?<br />
मनसुख - आजकल देश बदल रहा है तुको नहीं पता? मनसुख ने प्रश्वाचक दृष्टि काका के ऊपर डाला काका अपने काम में व्यस्त। मनसुख बोलना जारी रखा - काका हम सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ओऱ जा रहे है। आजकल अपने यहाँ राम-रावण, कौरव-पांडव ,राष्ट्रद्रोहो-राष्ट्रभक्त में ही सब बट कर एक दूसरे को देख और तौल रहे है।<br />
काका अभी तो एके पांडव दिख रहे है, बाकी लगता है अज्ञातवास पर है। मनसुख को लगा की उसका ध्यान अपने काम पर से भटक गया है सो चुप हो गया और गोबर के उपले बनाने में लग गया।<br />
काका- तो ई धृतराष्ट्र कौन है जिनसे ई जवाव मांग रहे हैं।<br />
मनसुख- जो हस्तिनापुर के सिंघासन पर बैठे है ।वही है। जो अपने आपको सत्यवादी हरिश्चंद्र कहते है।<br />
काका- लेकिन ऐसा का कर दिया जो अब महाभारत होये के सम्भावना हो गया। काका ने सारे गाय को सब तक बाहर ला के बाँध दिया ।<br />
मनसुख-महाभारत तो नहीं पता लेकिन सत्याग्रह तो जरूर हो रहा है।<br />
काका- अब कोनो अंग्रेज है जो सत्याग्रह कर रहे है....किससे आजादी चाहिए इनको...?<br />
मनसुख- काका सब ऐसे गडमड है कि हमुहो को नहीं समझ में आ रहा...।मनसुख के चेहरे पर विश्लेषक वाले भाव उभर गए। अब आजादी नहीं काका जवाव चाहिए जवाव । मनसुख कुछ तैस में लगा।<br />
काका- देख बेटा ई बेकार के ड्रामा में इतना ध्यान न दे । ई सब एके हाउ। आज यहां फायदा तो इनके साथ न फ़ायदा तो बस एक नया कहानी ले के शुरू। जब शुरू से गुरु चेला बने घूम रहे थे तब नैतिकता नहीं कचोटे। आज गांधी के फोटो ले के बैठ गए है। हम तो पहले ही कहते थे कि ई सब इकठ्ठा हो के बस एक और सब्जबाग दिखा रहे है। तो तू को बड़ा जोश आता था न काका कुछ तो बदलेगा। देख का बदल गया। अरे बेटा चरित्र के जड़ में जब घुन लग गया तो पेड़ कुछ समय हरा भरा दिखेगा फिर तो सुखना ही है। सब समाज में हो रहे मूल्य को तो देखेंगे नहीं बस भेष बदल कर भाषणबाजी करेंगे। अरे ई सब भी इसी समाज से सिख के आये है। जो सीखे है वो कर रहे है। बाकी जनता तो नारे लगाने के लिए है ही....। आज इसके पक्ष में कल उसके पक्ष में ...।बदलना कुछ नहीं। देख नहीं रहे हमारी हालात जस के तस है। अरे कुछ बदलता तो हमहू नहीं बदलते और...... कहते कहते काका रुक गए।<br />
मनसुख एक टक काका को सुन रहा था। अब तक उसने सोचा था कि काका को इन सब पर कोई झुकाव नहीं रहता। मन ही मन अब सोच रहा था काका की सब चीज पर पैनी नजर है...।<br />
<br />
<br /></div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-44118334809479874272017-05-04T03:09:00.000-07:002017-05-04T03:09:14.782-07:00गर्मी ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
काका माहौल बहुत गर्म है। मनसुख ने रात में आंधी और बारिश से भर गए पत्ते और कीचड़ को साफ़ करते करते कहा।<br />
काहे रे रातिये तो बारिश हुआ है- हाथ में खैनी रगड़ते-रगड़ते काका ने पूछा। देखो कितना बढ़िया मौसम हो गया है। नहीं तो लग रहा था कि झुलसा देगा और दो तीन थाप रगड़ कर जोड़ से मारा।<br />
बस तुम रहने दो , हम कुछ और कह रहे है और तुम हो की यही पुरबिया और बरखा सोच रहे हो। मनसुख अपनी स्व्भविक वेग में बोला और कीचड़ को घर के सामने से हटाने में लग गया।<br />
अब तक काका का खैनी बन गया । चुटकी में उसे अंतिम रूप देकर उसे ऊपर के ओंठ में भर लिया। गले से एक खखास कर थूक फेकते हुए मनसुख की ओर देखा।<br />
मनसुख तब तक आगे पीछे सफाई कर झाड़ू रखकर सामने चापाकल पर पैर हाथ धोने लगा। काका वही देहरी पर बैठ गए।<br />
मनसुख - अब तुम रहने भी दो ।कुछ देश दुनिया का खबर रहे तब तो पता चले। मनसुख अपने गमछे से मुह हाथ पोछता हुआ बोला।<br />
काका- अब बेटा खोज खबर लेते भी रहते तो ऐसे ही रहते। दो जून रोटी का हिसाब रख लेते वही बहुत है।<br />
इतने तो खोज खबर रखने वाले है। पर अपना स्थिति तो जस के तासँ है।<br />
मनसुख- काका वो तो ठीक है पर का चल रहा है वो तो पता रखना है न। नहीं तो आगे भी वैसे ही चलते रहेगा। लगभग काका की बातों में सहमति की मुद्रा दिखाते हुए मनसुख बोला।<br />
काका- खैर बता का कह रहा था कि गर्मी बहुत बद्ग गई है। कौन से गर्मी की बात कर रहा है। अब काका भी मनसुख की बात से सहमत दिख रहे।<br />
मनसुख- फिर से वही सीमा पर अंदर घुस के अपने जवान पर हमला कर के मार दिए। पाकिस्तानी कभियो सुधरेगा नहीं। बहुत तनाव है।<br />
काका - तो अपने सैनिक का कर रहे थे। वो कहे नहीं वही पर टेंटुआ दबा दिए।<br />
मनसुख- अब ई तो नहीं पता। शायद सरकार का आदेश नहीं होगा। मनसुख कुछ दुखी भाव से बोला।<br />
काका- तो का सरकार खाली मरे के आदेश दिया है। काका की झुर्रियों में कुछ खिंचाव आ गया।<br />
मनसुख- काले रेडियो में समाचार दे रहा था कि सरकार ने इसका घोर निंदा किया है।<br />
काका- निंदा करे से का ओकरे नींद उड़ जाएगा । समाचार तो ऐसे ही सुना रहे हो। निंदा तो ओहो खूब किये रहे लेकिन तनिक मौन रहकर। काका के मुह पर उलाहना के भाव घिर गए। ई तो खूब मुखर है तो भी निन्दा और बयाने से काम चला रहे है।<br />
मनसुख - न काका ऐसा नहीं है देखा नहीं पिछले दफा कैसे घुस के मारे थे । मनसुख के चेहरे पर कुछ गर्व के भाव भर आये।<br />
काका- हाँ बस यही सब के सुना सुना के पेट भर दे। अरे तितर वा के संग बटेर बनला से काम चलेगा। बेचारे जो जा रहे है उनका घरे से पूछो। सब बातें के गोली चलावे में लागल है। अब जाओ और केक खा के आओ।<br />
मनसुख- काका कोनो काम करे तो तुम खोट निकालन में ही लगे रहते हो।<br />
काका- बेटा हम खाली भगवान् के भक्त है।<br />
मनसुख- तू को अभी समझने में देर है। देख काका इसको डिप्लोमेसी कहते है। मुस्कुरा के मनसुख बोला।<br />
काका- देख चार आखर पढ़के तू जो चाहे बोल लेकिन बेटा घर में बुलाके जांच करवाया का हमारे अधिकारी सब गुड़ गोबर है...। काका की त्योरियां चढ़ी जा रही थी।। जब मन हो जा के केक खा ले और जहाँ मन हो जा के गरिया दे । ऐसा नहीं होता है। कहते -कहते काका रुक गये।<br />
मनसुख - तो काका का करि के चाही ??<br />
काका,- अब ई तो काबिल लोग सब बताएगा ....देख नहीं रहा कल टिबिया में कैसे चिल्ला चिल्ला के पाकिस्तान को हरा दिया। बेटा ई पाकिस्तानियों भी सब जानता है ।आखिर दोनों सहोदरे हो न ....<br />
इतना कहते कहते काका की आँखे जाने कहाँ खो गया और मनसुख टुकुर टुकुर ताकने लगा।<br />
<div>
<br /></div>
</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-58413242502796814842017-04-14T22:48:00.000-07:002017-04-15T23:33:31.148-07:00एक आश .....।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
हे मानवाधिकार के ज्ञाता<br />
हे इस धरा के क़ानूनी आ-भूषण के सिरमौर<br />
देखो मौका है .....उठो.....आँखे खोलो....कब से हम....इन्तजार में है......अपने शक्ति को पहचानो....उसे पाकिस्तान नहीं.....अखंड भारत का एक हिस्सा मानो...... देखो अपने ज्ञान और विवेक पर कालिख न लगने दो......बस अब कूच कर जाओ......है इन्तजार वहां भी....कोई तो आये और गुहार लगाएं..... देखो ....हम कब से इन्तजार में है.....किसी कुल का भूषण.....खोने वाला है....<br />
हे भारत के न्यायमूर्ति..... मानवाधिकार के भूषण .......अब शांत नहीं....."प्रशांत" महासागर सा उसे अपनी ज्ञान गंगा से पुनः इसी धरा पे ले आओ।<br />
हम जानते है तुम्हे तो सिर्फ निरीह मेमना की वेदना से व्यथित थे.......। तुम तो सिर्फ न्यायप्रिय हो हमें पता है....।<br />
हे बेसुरे अज्ञान के ज्ञानी जन........ हमेशा झकझोरते इस धरा का मन........। कहाँ किस कुञ्ज गली में खो गए.......। अब आ भी जाओ .....। उन गलियो में भी अपनी तान सुना जाओ.......। जहाँ किसी कुल का भूषण खोया है......।<br />
जाओ वत्स .....चिंतातुर न होओ..... आज इस बात को साबित कर दो.....असाब खटमल से तुम्हारा कोई नाता नहीं था.....तुम तो बस आजादी प्रिय हो......। और हाँ.... अपने साथ जवा..... हर......लाल ....को भी ले लेना....कोई अपनी आजादी के लिए तुम्हारा राह देख रहा है...।<br />
लोग राह देख रहे है........। उन गलियो में अपने आभूषणों को न्योछावर करने का........। हे प्रबुद्धजन गण कहाँ ले जाओगे.......। ये तख्तो और ताज......। देखो .....जाओ बिखेर दो उन गलियो में .......वो पुरस्कार और सम्मान.......। जो गले को चीखने से रोकता है.......।<br />
अब फिर से समय आया है.......। साबित कर दे ....हे गुनी...जन.... मन.....इस स्वतंत्र धरा के गन .....। साबित कर दो पहले कुछ भी दिखावा नहीं था....। आप वाकई इंसानियत के सच्चे हमदर्द है.....।<br />
खोये हुए किसी कुल के भूषण को पाने में मददगार बने....। इसी आस में....।। <br />
मनसुख जाने किस्से सपने में गुहार लगा रहा है....।।</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-30898897002240465672017-04-08T09:52:00.000-07:002017-04-08T09:52:14.776-07:00फ़िल्मी अवार्ड<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
किसी से भैया कुछ न पूछो ।अब हर चिज में मीन मेख ठीक तो नहीं। लो देखो कैसे सब इस अवार्ड के धकियाये रहे है। अब सबके एक पसंद थोड़े सो सके। जकरा जे पसंद आवे , दे दिहिस।अब हर बाते के एक रंग से देखना ठीक नहीं।</div>
<div style="text-align: justify;">
अब रुस्तम के बीबी जो भी किये उसमे रुस्तम के का गलती रहे। वो तो अपने काम ठीके किये थे सो अवार्ड मिल गयो। अब एही में देशी और विदेशी कहाँ से आ गया। लेकिन कुछो तो उ का बोले है जूरी ऊ के सोचे चाही।अब भैया समय ऐसे ही ख़राब है सो दो दो बेटियों को पाले में का हाल होबे है सो जा के उनका पूछो। और उतने नहीं बेटियस सबके यु मिटिया में लोटाय लोटाय के दंगल करवाना कोनो आसान काम थोड़े रहे। देखो कैसे दुनु बिहनिया के पहलवान बनाय दिस। लेकिन जो भयो ठीक नहीं है कहा "बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ " के नारा सब जगह भांय भांय सुनाई देत है।लेकिन जब एक बेचारा बाप उतनी मुश्किल से अपन बेटी को बनावत हो तो कोई इनाम नहीं।भैया कुछो तो बाप के दर्द समझो। लेकिन समझे कैसे बेटी के बाप होये तब तो। अब जाओ भैया अवार्ड तो चले गवे कही और। सुन्दर मेहरारू के देख सब भैया ओकरे पसंद केलिस तो अब का कहे।अब कितनो सुल्तान सुल्तान चिल्लाय लियो ई रुकबे नहीं। कहा सुल्तान के मेहरारू और कहा रुस्तम के। ले गयो भैया अब गावो खूब अशहिष्णु राग, गला भोथरा जाहिये लेकिन अवार्ड वाला सुर न पइबे। लेकिन कुछो कहो बिटिया नीरजा तो नाम रौशन करे दिहिस। एहि में कोनो दिक्कत होवे के न चाही। </div>
<div style="text-align: justify;">
अब एके ठो के लेके अइसन बात ठीक नहीं। बाकी ऐसे भी कलाकर कोनो अवार्ड के भूखे थोड़े रहिस। उनका तो कला के सम्मान चाही दर्शको के प्यार चाहिस और का। लेकिन भैया जे कहो रुस्तम कोनो ठीक किये रहिस का ? बीबी तो सुल्तान के ठिक रहिस। बाकी जूरी जाने हमको का पता।</div>
<div style="text-align: justify;">
तब तक काका जोर से आवाज दिए-अरे मंसुखवा बेरिया बीते जा रहा है ,चारा देवेगा की ऐसे घोड़ा बेचकर सोये रहेगा। मनसुख पता नहीं किससे सपने में भाषण बाजी कर रहा था।</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-49843343675233013892017-03-29T23:51:00.000-07:002017-03-29T23:51:06.542-07:00मनसुख और एंटी रोमियो<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
काका परेशान सा मनसुख को ढूंढ रहे है।पीछे खलिहान और दालान सबी जगह देख लिया लेकिन मनसुख है कि दिख नहीं रहा।<br />
काका ने आवाज लगाया - मंसुखवा अरे मंसुखवा कहाँ मर गया रे। काका जब नाराज होते है तो ये उनका आशीर्वाद होता है मनसुख के लिए। कोई आवाज न सुनकर वही पिछवारे में छाही में बैठ गए।<br />
तभी थोड़ी देर में मनसुख वहीँ खेत की तरफ से लोटा हाथ में लिए हुए आते दिखा। दिन के आठ बज गए थे। शौंच आदि से निवृत होने का यह बहुत ही विलम्ब समय है। मनसुख को देखते ही काका की त्योरियां चढ़ गई। का रे तोहरो अब नया जमाना के हवा लग गया है कि। ई कौन सा समय है दिशा जाने का। मनसुख काका के इस रूप को देख थोड़ा सकपका गयालेकिन सँभालते हुए बोला- न काका अब तो शौचालय बनने वाला ही है सो कभियो जा सकते है ओही का अभ्यास कर रहे है और मुस्कुराने लगा।<br />
काका-तोहरा अभी दिल्लगी सूझ रहा है। ई देख का आया है। काका ने हाथ में रखे लिफाफे को हिलाते हुए दिखाया। मनसुख अपने हाथ में रखे लोटा को राख से मांजते-मांजते पूछा। का है काका ई।<br />
हम जो पढ़े होते तो तुमरे बाट निहारते खुदे नहीं पढ़ लेते। हमको का पता की इसमें का लिखा है।थोड़ा चिढ़ते हुए कहा।लेकिन वो डाकिया बाबू कह रहे थे की लखनऊ से आया है। शायद तोहरे साडू का है। अब तक मनसुख हाथ पेड धो चूका था।गमछे से हाथ मुह पोछते बोला कही उनकी बिटिया का ब्याह का न्योता तो नहीं है। काका-अब तू खुदे देख ले बोलकर लिफाफा मनसुख की ओर बढ़ा दिया।<br />
मनसुख लिफाफा खोलकर पढ़ते पढ़ते थोड़ा गंभीर सा हो गया। काका-का रे सब कुछ ठीक है न।<br />
मनसुख- हा काका गुड्डी का ब्याह है।<br />
काका- ई तो बड़ा ख़ुशी के खबर है,लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे तू को ख़ुशी नहीं हुआ।<br />
मनसुख-न काका अइसन कोनो बात नहीं है। हम सबको ब्याह में बुलाया है।<br />
काका-वो तो बुलाइबे करेगा कब है ब्याह।<br />
मनसुख- अगले हफ्ताह चार तारीख के।<br />
काका-तब तो अभी समय है चल जा टिकेट कटा ला।<br />
मनसुख- अभिये टिकेट काहे काका हम जाई काल में कटा लेंगे।<br />
काका- अरे ई कोण बात हुआ मेहरारू भी जायेगी अइसन कैसे चल जाएगा।<br />
मनसुख- न काका हम सोच रहे थे की अकेले चले जाए।<br />
काका- तोरा दिमाग सठिया गया है कि। मेहरारू को छोड़ के जाएगा।सब का बोलेंगे। चल बचवन सब तो हमरे साथ रह लेंगे। हमरो मन लगा रहेगा।<br />
मनसुख- न काका वो सब तो ठीक है लेकिन मेहरारू के साथ में लखनऊ जाये में थोड़ा डर लग रहा है।मनसुख कुछ झिझकते हुए बोला। तुम समाचार वामाचार पढोगे तब तो पता चलेगा।<br />
काका-अरे कोनो तुम भाग के शादी कयो है कि जो तुमको डर लग रहा है। काहे का आता है समाचार में।<br />
मनसुख- न काका वो योगी जी एंटी रोमियो स्क्वाड बना दिए है न, कही हम दोनों को साथे देख पुलिस वाला रोमियो समझ के बंद कर दे तो।<br />
काका बड़े ध्यान से सुन रहे थे लेकिन उनके पल्ले कुछ पर नहीं रहा था।अब तक सूरज भी थोड़ा ऊपर चढ़ गया था। गमछे से पसीना पोछते बोले- ई रोमियो का होता है रे। मनसुख को समझ नहीं आ रहा था कि इसका क्या जवाब दे ,नजर नीचे करके बोला- ई जो लड़का सब लड़की को प्यार करता है उसको काका रोमियो कहते है। तो इसमें शरमाये वाला कौन सा बात है जो तू ऐसे नजर झुका लिया है, लगता है मेहरारू के संगत में तू भी मेहरारू बन गया है। मनसुख को काका का ये कटाक्ष बढ़िया नहीं लगा और तुरंत बोला-न काका अइसन कोनो बात नहीं है, लेकिन अगर हमको साथे देख के पुलिस वाला कुछो सबूत मांग बैठेगा तो हम का दिखाएंगे।<br />
काका- लेकिन ई योगीजी रोमियो के पीछे काहे पर गए है। माना खुद ब्रह्मचारी है लेकिन जिसको प्यार व्यार हो गया है उसके पीछे काहे पर गए है। ई तो बढ़िया बात है न की सब एक दूसरे से प्यार करे।<br />
मनसुख- काका प्यार तो ठीक है लेकिन उनका कहना है कि ये खुल्लम खुल्ला रोमांस ठीक नहीं है। काका के लिए रोमांस नया शब्द था चौंक कर हौले से पूछा- ऐ मनसुख ई रोमांस का होता है। चेहरे पर काका के कुछ रौनक सा छा गया। काका तुम हमेसा ई फालतू बात न करो, हमको न पता ई रोमांस के बारे में, वैसे तुम सब जानत हो बेकार में हमसे ठिठोली कर रहे हो।<br />
मनसुख की इस बातो से काका कुछ गदगद हो गए और कहा- अरे लेकिन तू को कहे डर लग रहा है। तो मनसुख बोला-काका काले पेपर में दिया था कि एक मिया बीबी पार्क में बैठे थे उसको पुलिस ने रोमियो समझ के बंद कर दिया।<br />
काका- अरे ई रोमियो का बहुते ख़राब आदमी था कि, अइसन का किया था तुम जानते हो।<br />
अब काका की इन बातों से मनसुख को अपने ज्ञान बघारने का मौका मिल गया।आखिर वो भी सरकारी स्कूल से दसवीं पास था।<br />
मनसुख- न काका रोमियो तो बड़ा भला लड़का था और उसकी जूलियट को बड़ा प्यार करता था। इसलिए प्यार करने वाले लड़के सबको रामियो कहते है।इसके आगे अब उसे और कुछ याद नहीं आ रहा था।<br />
काका- बड़ा अजीब समय आ गया है।आजकल कोई एक दूसरे से प्यार नहीं करना चाहता, जहाँ देखो सब एक दूसरे को त्योरियां चढ़ा कर ही देखते है, फिर ये भोले भाले मासूम जिनको प्यार करने की उम्र है अगर इसको इस जुर्म में हवालात में बंद करोगे तो नफरते फैलेगी। मनसुख ध्यान से काका के बात को सुन रहा था और बोला इसलिए तो काका हम जाना नहीं चाहते।<br />
काका- अरे ई सब अइसने कुछ पुलिस वाला के जबरदस्ती है।आजकल तो कोई काम नहीं करना चाहेगा और करबो करेगा तो अर्थ में अनर्थ लगा देगा। अरे योगीजी कुछ और कहे होंगे और ई सब कुछ और समझ बैठा है। तू चिंता मत कर अइसन अंधेर अभी नहीं है कि तू को मेहरारू के साथ देखके रोमियो समझ लेगा। तू अइसन तो कबुहो नहीं लगता है, जा अपना टिकट कटा ले।<br />
मनसुख समझ नहीं पाया कि काका उसकी तारीफ कर रहे है कि ताना मार रहे है।लेकिन जबाब में गर्दन हिलाते उठके गुनगुनाते चल दिया।काका हौले हौले मुस्कुरा रहे थे।<br />
<br />
<br /></div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-81472623234912541042017-03-20T09:38:00.002-07:002017-03-20T09:38:47.676-07:00जोगीजी वाह ......<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज मनसुख के चेहरे पर मोती की तरह झलकता पसीना जैसे नाच रहा है। चारा काटने वाले मशीन को दे जोर जोर से घुमाते हुए अपने ही धुन में गुनगुना रहा है-<br />
योगी जी धीरे धीरे , ले लिये सी ऍम के फेरे<br />
योगीजी वाह योगी जी वाह....।।<br />
काका वही बगल में अपना पुआल ओटियाने में लगे थे। मनसुख के हाव भाव को बहुत देर से देख रहे थे। का रे मंसुखवा का बात है ।अब तो होलियों ख़तम हो गया और अब तक फगुनी गाये जा रहे हो। काका के आवाज से लगा जैसे मनसुख के तल्लीनता में ब्रेक लग गया। मनसुख काटे हुए चारा को एक तरफ रखते हुए बोला- काका तुमको न दिन दुनिया का पहले पता था न अब रहता है।<br />
काका- का रे अइसन का हो गया जो हमको नहीं पता है।<br />
मनसुख- तुमको पता है योगीजी अब मुख्यमंत्री बन गए।<br />
काका- काहे नितीश कहा चले गए और शुशील मोदी कब योगी हो गए। चल तब कही से तारी ला बहुते दिन ससुरा बंद कर दिए।<br />
मनसुख- काका तुम बस तरिये के चक्कर में रहो और हम अपने शुशील मोदी नहीं यू पी के योगी के बात कर रहे है।<br />
काका- न रे हम भी नरेंद्र मोदीये सोच रहे थे का उ अब योगी बन गया। लेकिन कुछो है पुरे हिलाय दिया है। लेकिन उ योगी कब बन गया।<br />
मनसुख ने अपना सर झटक कर अब इकठ्ठे घास को टोकरी में रखने लगा। काका फिर बोले-अरे बताओ तो।<br />
मनसुख- तू को नहीं पता तो पूछो न का अंट शंट हिसाब लगा के बोल देते हो। हम यू पी के नये मुख्यमंत्री के बात कर रहे है। अब वहाँ के मुख्यमंत्री योगीजी हो गए है।<br />
काका- अरे ई नाम के कोनो योगी है कि सचमुच के योगी है और योगी है तो मुख्यमंत्री कैसे बन गया। जाओ कही धुनि रामओ, भगवान का भजन गाओ।ई जोगी सबके अब का हो गया है।<br />
मनसुख- काका ई योगिये है और सब कह रहे है कि ये उत्तम प्रदेश बना देगा। यू पी के हिला के रख देगा।<br />
काका कुछ सोचने की मुद्रा में अपने सफ़ेद दाड़ी खुजलाने लगे और बोले- वैसे तो हमको ज्यादा नहीं पता, लेकिन अब तक धनबली, बाहुबली बाले नेता तो सुने थे लेकिन ई योगबली बाले नेतवन सब भी बहुत हो गए है। आखिर कुछ तो बदल रहा है। और ऐसा तो नहीं की हिलाय के चक्कर एक दूँ ठो खूटवा उखड़ जाए।<br />
इस पर मनसुख भी कुछ सोचनीय मुद्रा में आ गया और<br />
चारा मिलाकर गाय को देते हुए बोला हाँ काका कुछ तो बदल रहा है लेकिन का समझे में नहीं आ रहा है। बाकि तो वकते बताएगा कि खूंटा हिलेगा की मजबूत होगा।<br />
काका- सुन बुड़बक अब तू ई चारा/वारा छोड़ और देख उ मंदिर के महंत है न उससे कुछ दीक्षा ले ले।<br />
कहे काका मनसुख कुछ समझ नहीं पाया।<br />
काका-। तू बुड़बक ही रहेगा।अरे का पता भगवान् के आरती करते करते कब भगवान् प्रसंन्न हो जाए।अपने यहाँ भी तुझे टिकट मिल जाए।अरे अभी तो पांच साल है।अब कुछ सोच ले।<br />
मनसुख बिना कुछ बोले गुनगुना रहा था- योगीजी वाह योगीजी<br />
कोई मांगे कुर्सी कोई मांगे टिकट<br />
हम मांगे दो जून की रोटियां बस<br />
योगीजी वाह योगीजी।।<br />
<br />
<br /></div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-53775451059375530582017-01-24T07:32:00.000-08:002017-01-26T02:27:19.140-08:00पूर्ववत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
साईकिल ने हाथ थमा या हाथ ने साइकिल ये तो पता नहीं। लेकिन दोनों को सफर में एक दूसरे की जरुरत है सफर तय करने के लिये। वो निकल पड़े है मंजिल के लिए ।पीछे पीछे कुछ लोग दौर रहे है। उनकी शिकायत है कि साईकिल तो उनकी जागीर है इन्होंने धक्का मारकर गिड़ा दिया । अब किसी और को पीछे बिठाकर खीच रहे है। जमीन जायदाद ले लेते हम कुछ न कहते किन्तु ये एक मात्र सहारा साईकिल छीन कर भाग रहे ये तो ठीक नही।एक बेचारा बुजुर्ग रास्ते के किनारे खड़ा खड़ा हांफ रहा है। घोर कलियुग है जिसने साईकिल ताहफे में दिया उसी को बिठाने से मना कर दिया।</div>
<div style="text-align: justify;">
किन्तु रास्ते पर चलते-चलते अगर बीच रास्ते में हाथी मिल जाए तो लड़खड़ाना स्वभाविक है। और ये तब तो बिलकुल संभव है जब साईकिल को किसी कमजोर हाथ ने थाम लिया हो ।हाथी मस्त है और मंजिल के लिए निकल भी पड़ा है । साईकिल सवार बिना छेड़े साइड से मंजिल पहुचने की जुगत में है।किंतु जाने कहाँ से कुछ चींटी हाथो के सूंड में काटा ।हाथी भड़क गया चिंघाड़ सुनकर साईकिल लड़खड़ा कर रास्ते के किनारे कीचड़ संग नाले में गिरता है जिसमे कुछ कमल खिल रखे है। हाथी गुस्से में नीचे कीचड़ में घुस आता है किंतु सामने साईकिल सवार ,साईकिल तोड़े या कमल कुछ परेशान सा लग रहा है। बेचारा कमल पूरी तरह से खिल भी नहीं पा रहा है ।जाने कौन किसका शिकार बने ।अब तो मनसुख के मन में ये सब देखकर बस यही कुलबुला रहा है कि अब भले कोई साईकिल पर चढ़ा ले या हाथी पर बैठाये ,सुन्दर खिले कमल से मन बहला दे कल '':::'''''पता नहीं क्या ''''</div>
<div style="text-align: justify;">
कौन खिलेगा कौन टूटेगा या हाथी चिंघारेगा या तो वक्त ही बताएगा , मनसुख बस वक्त काटने में लगा है ...पूर्ववत सा.....।।</div>
</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-29555771262526797712016-10-29T20:47:00.000-07:002016-10-29T20:47:38.899-07:00दीपावली शुभकामना......<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> जीवन अनगिनत श्याह प्रतिबिम्बों से आंख मिचैली के साथ अनवरत गतिमान है। मन का क्रम भ्रम के भवर में घिर अधीर हो ठहर जाता किन्तु समय सतत गतिमान है।इसी धीर अधीर मन को नए उत्साह से लबरेज कर पुनः उत्साहः के नव प्रकाश भविष्य के राह आलोकित हो जिससे हर्ष दीप प्रज्वलित रहे त्योहारो की श्रृंखला को सम्भवतः जीवन दर्शन में समाहित किया है। दीपोत्सव में दैदीप्यमान अनगिनत प्रकाश बिम्बों की श्रंखला भविष्य के गर्त में छिपे तम को परास्त कर ऐसे उदित संसार का शृजन कर सके जहाँ हर किसी को उसके भाग खुशियो की लड़िया फुलझड़ी की भांति खिलखिला सके। फटाकों की प्रतिध्वनित आवाज कानो को ही न गुंजित कर दिल के तार को भी झंकृत कर सके जिससे जीवन संगीत में सतत नए धुन का प्रवाह हर पल खुशियो के लय ताल से तरंगित हो सके। आपके कुछ दीप उन नामो को भी समर्पित हो जिनसे प्रत्यक्ष या परोक्ष भाव कही न कही हमारे खुशियों के कारणों के कारक हो। भावो के प्रकाश हर किसी को उसके हिस्से का अलोक दे ऐसे दीप के अलख ज्योति से चहुँ दिशा दैदिप्तमान हो। आप सभी को दीपावली के पर्व की हार्दिक शुभकामना। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> </span></div>
</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-28149831732295558062016-10-25T09:53:00.003-07:002016-10-26T19:02:59.731-07:00ग्रेट महाभारत शो <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> मनसुख के हाथ में अखबार का आधा भाग पड़ा था। मनसुख कुछ गौर से उसमे पढ़ने की कोशिस कर रह था। तब तक बगल में बैल के नाद में चारा मिलाते -मिलाते काका ने मनसुख से कहा - का रे जब पढ़े के रहे तो खेत में भगता था अब का ओ हे में पढ़ने की कोशिस कर रहा है। मनसुख को पता है कोई काम न भी हो तो काका बिना टोके रुकने वाले कहाँ है। मनसुख बोला न काका पढ़िए लेते तो का हो जाता। ई सब तो पढ़ले लिखल है जकरा हम रोज केहू न केहू बहाने कोसते रहते है। सबके नजर में तो सारे दिक्कत के जड़ तो यही पढ़ल लिखल बाबू सब है। का बात है मनसुख आज तो बड़ा बुद्धिमानी वाला गप्प हांक रहा है है -काका बोले। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मनसुख -का काका हमारे बुद्धि पर कोनो शक है का। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">काका -नै रे फिर भी ई तो बता का लिखल है ई फाटल अखबार में। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मनसुख -न काका हमको ई नहीं समझ आ रहा की परिवार में सब देश के लिए लड़ रहा, देखो देश सेवा के लिए सब कितना मेहनत कर रहे है। और ई अखबार वाले इनको कोस रहे है। बेटा तो सब बात मानने के लिए तैयार है लेकिन बाबूजी है की मानते नहीं। ई तो काका महाभारत से भी ज्यादा गांठ वाला परिवार लग रहा है। थोड़ा कलियुग है इसलिए लगता है कहानी कुछ उलट सा गया है। यहाँ पता नहीं धृतराष्ट को किससे मोह है देश से की बेटा से की भाई से । काका अब तक तो ध्यान से सुनकर समझने की कोशिस कर रहे थे किन्तु कुछ पल्ले नहीं पड़ने से झुलाकर बोले -अरे का बात लिखा है साफ़ साफ़ बता। हम कोनो कहानी नहीं पूछ रहे। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मनसुख -हाँ काका ओहि तो बता रहे है। अब तो समाचार भी कहानी जैसे ही हो गया है। अब काका बात ई है की हमको भी ठीक से कुछ समझ में नहीं आ रहा है। पहले तो ई महाभारत जैसा लग रहा था किन्तु भाई-भाई का प्यार देख लगने लगा की रामायण है। अब काका ई दोनु का मिक्स कहानी है। काका मनसुख को समझने की कोशिस में लग रहे है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मनसुख आगे बोला -अब काका बात अइसन है की बात तो बस राजगद्दी के ही है जैसे की रामायण और महाभारत में था। किन्तु यहाँ अब पुत्र प्रेम किसी कारण से शायद कलयुग का प्रभाव है मित्र प्रेम में ज्यादा बदल गया है। इस कहानी में तो सब भगवान ही छाये है। कही रामजी है तो कही शिवजी,गोपाल भी है कृष्ण वाला रूप में अर्जुन को समझा भी रहे और साथ भी है। बेटा का संस्कार है की अभी तक अपने पिता से काफी नरमी और मुलायम से पेस आ रहा है। लेकिन अपने पिताजी के अमर प्रेम से थोड़ा शर्मिदगी महसूस कर रहा है। दुनिया के लांछन से डरकर पिताजी को समझने की कोशिस में है लेकिन बाबूजी है की मान नहीं रहे। अब काका का सब्र जवाब दें रहा था कुछ -कुछ त्योरी चढ़ा कर बोले -अरे तू यही बकवास कर रहा है हम अखबार का समाचार पूछ रहे और तू है की किसी के घर के बंदरवाट का कहानी सुना रहा है। यहाँ तो रोजे किसी के घर में ई सब झगड़ा चलते रहता है। तू कोनो नहीं जानता है क्या। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मनसुख -काका तू बेकार में खौजियाते रहते हो अब यही समाचार लिखा है तो का बताये। अब तोहे पढ़ना आता है तो पढ़ लो।काका तो ठहरे कला अक्षर भैस बराबर ,बोले अच्छा आगे बता। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मनसुख -तो काका ओहि तो बता रहे। अखबार कहता है की झगड़ा का कारण का है ई तो पता नहीं। लेकिन सब सुलह में लगे है ,लेकिन दिक्कत है की यहाँ कृष्ण तो साथ है लेकिन अभी तक अर्जुन को गीता ज्ञान नहीं दिए। अभी तो बस सुलह का दौर चल रहा है। अब देखे इस नौटंकी में कब अर्जुन सामने हाथ में गांडीव धारण कब युद्ध के ललकार दे। ई काका ग्रेट महाभारत शो चल रहा है, वैसे भी भगवान् तो कह ही गए है कि ई यदु वंश तो आपसे में लड़ कट मिटेगा। अब देख तो सब रहा है लेकिन समझाता काहे नहीं ई नहीं समझ में आता है। जनता भी आनंदित होकर इस नौटंकी को देख मजे लेने में लगी है। ई भी जरुरी है न जब परिवार नहीं तो गांव कैसा और गांव न तो शहर कैसा और शहर न तो प्रदेश कैसा। इसलये सब मिलकर पहले परिवार बचाने में लगे है ताकि प्रदेश बचे। कुछ दिन राज काज रुकिए जाएगा तो कोनो सुनामी थोड़े ही आ जायेगा। सो सबकुछ छोड़छाड़ कर अब इसको सब सुलझाने में लगे है। वैसे भी यहाँ तो सब भगवान् भरोसे ही चलता है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> किन्तु काका के दिमाग में अब भी कुछ नहीं पल्ले परा और वो बैल को चारा देकर अपने दूसरे काम के लिए चल दिए। जबकि मनसुख उस अख़बार में कोई और कहानी तलाश रहा था। </span></div>
</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-7208188623198604412016-10-10T21:00:00.004-07:002016-10-10T21:00:49.936-07:00विजयादशमी ......<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">सुबह से हर्षोल्लास गांव में छाया हुआ है। समय करवटे बदल रहा है। सब कुछ पूर्ववत है, किन्तु जीवन की रफ़्तार बढ़ाने को आतुर सब ।सब खुश नजर आ रहे है। मनसुख भी खुश है। आज विजयादशमी है। महिषाषुर मर्दन के बाद आज फिर से एक बार रावण जलने को तैयार है। बचपन से ही मनसुख गांव में इस उत्सव को देखता आ रहा है। पहले मेला का अपना ही आनंद होता था और रावण के जलने से ज्यादा मजा मेला में आता था। किन्तु समय के साथ साथ बहुत कुछ बदल गया लेकिन रावण बार -बार जलने के बाद भी आज फिर से एक बार विजयी मुद्रा में सामने के मैदान में खरा है। धर्म में मनसुख को पूरा आस्था है। किन्तु फिर भी बार -बार रावण का जलन उसे बैचैन करता है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> वह मैदान की ओर बढ़ा चला जा रहा है। भीड़ में बच्चे बूढ़े सभी अपने लिए एक उपयुक्त जगह को तलाश रहा है की रावण को लगते बाण और उठते चिंगारी का पूरा आनंद ले सके। काका पहले ही उस भीड़ में खो चुके है। मनसुख की नजर जगह के साथ -साथ काका को भी ढूंढ रहा है। उस भीड़ में रावण के पुतले को देखते हुए उसकी कई छाया कृति भीड़ में मनसुख के नजरो में तैरने लगा। मनसुख सोच रहा था यह आयोजन क्या बदहाली से झुंझते लोगो का मतिभ्रम कर देता या लोग वास्तविकता को भुलाने का बहाना ढूंढता है। तब तक भीड़ में मनसुख को काका नजर आ गए। मनसुख जोर से चिल्लाया -काका ओ काका ,काका पलट के मनसुख को देखा और इसारे से कहा आते है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">काका बड़ी मुश्किल से भीड़ में जगह बना कर मनसुख के पास पहुचे। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">काका- कहाँ था अब तक कब से हम तुको खोज रहे है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मनसुख-बस काका अबिहे आये है। अच्छा चल आगे चले। दोनों और थोड़ा आगे सरकने लगे। तबतक दूसरी ओर से राम सबके साथ पुरे तैयार हो मैदान के अंदर आने लगे। लोगो के दंडवत के उत्साह को देखकर मनसुख काका से पूछा -ई का कर रहा है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">काका- पूजा ,और का मांग रहा है की हे भगवान् कुछ तो दे। लेकिन काका ई तो मंडली वाला राम है। कोनो असली थोड़े। अरे बुड़बक ई तो सब जनता है और वो भी। लेकिन लोग अब मन से कमजोर हो गया न कुछ पूछने का ताकत है न करने का। तो जहाँ भी मौका मिलता है बस हाथ जोड़के माँगने बैठ जाते। उहो देख हाथ उठाके कैसे आशीर्वाद दे रहा है जैसे बस उसका सारा मनोरथ अब पुरे हो जाएगा। देखता नहीं इलेक्शन टाइम में कैसे हम भगवान् हो जाते और ई नेतवन सब हाथ जोरे और हम भी बिना कुछ पूछे इनको भोट का आशीर्वाद दे देते। तभी तो ई हालात है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">पर काका हर साल ई ड्रामा रावण जलाने का जो होता है लगता है फिर भी रावण और बढिए रहा है। मनसुख कहा - देख रावण तो फिर भी ज्ञानी लेकिन अहंकारी था कहते है। लेकिन अभी के जो रावण है अज्ञानी ,महामूर्ख है। अब बेटा धर्म और अधर्म अपने अपने खांचे में रखकर देखने लगे है। जो हमारे मतलब को सिद्धकरे अब वही धरम है। ई बेचारा रावण तो हर साल ऐसे ही जलता है। देख एक ठो कुबेर पैसा ले के भाग गया। पकड़ो-पकड़ो सब चिल्लाए लेकिन पकड़ेगा कोई नहीं। ऐसा कितना तो रोजे हो रहा है। अचानक देख कैसे मनोबल बढ़ा की अब हर कोई राम कम और रावण की जरुरत ज्यादा महसूस कर रहा है। अब हर गली कूँचे में राम के नाम पर रावण लड़ रहे है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">तब तक एक तीर चला और सीधे बिच में खड़े रावण को भेद दिया। फटाको की आवाज में चिंगारिया धूं -धूं कर उठने लगा.मनसुख और काका की नजर उसी ओर टिक गया। लोगो की टोली जोर-जोर से ताली बजाकर खुश हो रहे थे। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">जलते रावण और खुश होते लोग को देख मनसुख दिग्भ्रमित था और रावण से निकलते लपटो को देख कर सोच रहा था की इसकी ताप आज लोगो के अंदर बसे रावण को भी जलाने की क्षमता रखता है या और भड़काएगी पता नहीं क्या। किन्तु पता नहीं क्यों आज रावण का जलना मनसुख को अच्छा नहीं लग रहा था। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">(<span style="color: red;">विजयादशमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामना )</span></span></div>
</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-27310149941588191702016-09-26T09:40:00.000-07:002016-09-26T18:15:56.276-07:00टीवी और समाचार <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">बहुत दिनों बाद आज मनसुख खुश नजर आ रहा था। शाम को सब काम निपटाकर वही आँगन में एक किनारे नीचे बैठा हुआ था।बगल में लालटेन की लौ गांव के किस्मत पर कब्जे जमाये काली रात को ललकारने में व्यस्त थी। सदैव के भांति मनसुख के चेहरे पर कुछ संतोष नजर आ रहा था। काका की नजर घर की देहरी पर बैठे-बैठे मनसुख की ओर गया। काका मसुख को टोके बिना नहीं रह सके।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">काका -का रे मनसुख का बात है बहुत चेहरा ख़िलल हौ आज।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मनसुख -है काका बाते कुछ अइसन है। लगता है काका तोहरे ध्यान वो तरफ नहीं गया है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">काका- का तरफ हम नहीं समझे</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मनसुख -ऊपर देख काका कैसे झिलमिला रहा है।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">काका ने नजर मनसुख के इशारे के दिशा में उठाया। देखा की आज काफी दिनों बाद कृशकाय विजली का खंभा जो बाढ़ की बदनीयत से आपने आपको अब तक बचाया हुआ था। उसके ऊपर मुकुट रूपी सुशोभित बल्ब कुपोषित बच्चे की तरह अपने जीवन से जैसे संघर्ष कर आज लौटा है लग रहा था। आश्चर्यजनक रूप से आज जैसे उस बिजली के तारो में आत्मा के प्रवेश को इंगित कर रहा था। गांव की सेहत को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,इसलिए लालटेन अपना दैनिक कर्तव्य निभा रही थी। फिर भी बिजली रानी बीच -बीच अपने आपको को निखार रही थी। मनसुख और काका अपने-अपने कारण से मोहित लग रहे थे। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> मनसुख के गांव में बीजली रानी कब कदम रखा ये तो ठीक-ठीक मनसुख को भी ज्ञात नहीं था। शायद देश के विकास प्रवाह में मनसुख के गांव भी आया ,लेकिन वो प्रवाह निखरा नहीं और अभी तक अपने उसी रूप में है। वह बचपन से ही वो खम्भे और उसपर लटका तार देख रहा था। लेकिन इस ससुराल में बिजली रानी जैसे खुश नहीं थी और जाने कब वो मायके भाग जाती। बड़े बाबू लोग कुछ जा कर मिन्नतें करते तो वो बीच बीच में वो झलक दिखलाने आ जाती थी। आज फिर से एक बार काफी दिनों के बाद वो अपने रूप का दर्शन गांव वालो को दी है और मनसुख उसे निहारने में व्यस्त है। काका भी उसके इस सम्मोहित रूप से नजर नहीं हटा सके। बिजली की स्थिति तो वही रहा लेकिन समय के प्रवाह ने घर में टीवी की उपस्थिति को केबल के जंजालो से अवश्य लपेट दिया। जिसके तार का एक कोना किसी तरह मनसुख भी अपने घर में ले आया। बिजली की क्षमता का सभी को भान था इसलिए उसकी तंदुरस्ती के लिए मनसुख ने एक स्टेप्लाइजर भी ले रखा था। मनसुख के पास एक छोटी सी टीवी भी है। आज मनसुख खुश है की बहुत दिनों के बाद उसके पिटारे का ढक्कन खुलेगा।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> मनसुख और काका खाने के बाद अपने एक कोठरी जो की बगल में था उसी में टीवी लगा था। काका वैसे तो जल्दी सो जाते है लेकिन आज बहुत दिनों के बाद टीवी देखने का लोभ नहीं छोड़ पाए।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">काका- लगा जल्दी चालू कर , बहुत दिन हो गलौ देखे बिना।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मनसुख -का देखे के है काका </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">काका - का देखबौ समाचार लगा दे। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> मनसुख ने एक समाचार चैनल लगाया तो उसके पर एंकर के साथ साथ उपस्थित मेहमान भारत और पाकिस्तान के बिच युद्ध छेड़ बैठे थे। लगता था चैनलो से मिसाइल निकल कर सीधा पाकिस्तान पर ही गिरेगा। उनके चीखने चिल्लाने के तरीके से काका कुछ चिढ गए। और बोले ई का लगा दिया रे ई सब तो लग रहा है अपने में लड़ बैठेगा तो खाक पाकिस्तान से लड़ेगा। भगा एकराके। मनसुख ने बटन दबाया। आगे खूबसूरत सी महिला एक समाचार चैनल पर अद्भुत ,अविश्वश्नीय,कुछ बाते बता रही थी। काका कुछ तुनके और कहा -अरे समाचार वाला चैनल नहीं है का। मनसुख -वही है काका। फिर ई का दिखा रहा है की ईसको बिजली का झटका नहीं लगता। यहवा अपने पोलवा के तार पर लटका दे तब पता चल जायेगा की का होता है। चल कौनो और लगा। मनसुख बेचारा फिर से बटन टीपा। उसपर एंकर बता रहे थे की इस जगह पर अश्व्थामा अभी भी आते है। नौ सो साल की गुथ्थिया सुलझाने में वह लगा हुआ था। काका चिढ से गए अरे इस सब कोनो समाचार है का। ई कहानी तो हमहू बचपन से सुनते आ रहे है। कही समाचार कुछ अपने देश प्रदेश के बारे में बता रहा है तो लगा। नहीं तो रहे दे। मनसुख बेचारा बदल -बदल कर देखता गया कहीं भारत भाग्य विधाता तो कहीं भारतवर्ष के नाम पर ऐतिहासिक समाचार पड़ोसे जा रहे है। अब काका से नहीं रहा गया बोले हम चलते ई बोकवन के बकवास तुम्ही सुनो और देखो ,इससे अच्छा तो अपन रेडियो है। इहो बिजली आके बस नींदे ख़राब की है और काका सोने चल दिए। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> मनसुख मन ही मन खुश हो गया। उसको अब तक जानकारी हो गया था की अब टीवी पर सास बहु की कहानी ही समाचार बन आता है। इसमें कुछो नहीं है है ,अब आराम से कोई फिल्म लगाते है और चैनल बदला उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा फिल्म नदिया के पार आ रहा था और "कौन दिशा में ले के चले रे बटोहिया गीत चल रहा था। मनसुख भी साथ ही साथ गुनगुनाने लगा और उसी में खो गया। </span></div>
</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-68512742151710360142016-09-22T19:48:00.001-07:002016-09-23T08:13:44.767-07:00पछतावा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> मनसुख के गांव में आज गर्वयुक्त उदासी बिखरी हुई है। एक शहीद की अंत्येष्ठि में शामिल होना है। बड़े -बड़े कदम भर सभी उसी ओर चल पड़े जिधर हजारो कदम बहके बहके से चले जा रहे है। बहुत दिनों बाद ऐसा लग रहा है, देश और देशभक्ति की अनोखी बयार हवा में घुल गई है। सभी मन ही मन गौरवान्वित महसूस कर रहे है। हर कोई उस शहादत में अपना भी हिस्सा देख रहा है। तिरंगे में लिपटा शव पर फूल मर्यादित रूप से अपने आप को सहेज कर रखा हुआ है। इस मौके पर कोई भी पंखुरी अपने आपको उस तिरंगे से अंतिम विदाई देने के पूर्व विच्छेदन नहीं चाह रहा है। पीछे-पीछे सेना की टोली अनुशासित रूप से, कदम-से-कदम मिलाकर अपने साथी का साथ, महाप्रस्थान से पूर्व अंतिम कदम तक हौसला बनाये चल रहा है। क्या बूढा क्या जवान हर कोई इस पल को जीना चाह रहा है। आखिर देश के लिए उत्सर्ग कोई अपने आपको कर दिया है। नीले आसमान में चमक रहे सूरज भी लगा जैसे इन पलो में गमगीन हो अपने आपको बादलो में ढक लिया और दोनों हाथो से वृष्टि पुष्प उसके कदमो में बरसाने लगा। सारा गांव उस समय थम सा गया। पर्दे के लिहाज भूल महिलायें भी उस वीर जवान को एक झलक देख अपने पलकों में बसा लेने हेतु उत्सुकता से अपने चहारदीवारी के किसी खाली झरोखे को ढूढने में प्रयत्नशील लग रही। सरकार के बड़े अधिकारी भी अपने इस मौके पर अपनी उपस्थिति सुनिश्चित कर रखे है। मनसुख भी उस भीड़ का हिस्सा है ,लखन चाचा भी साथ ही साथ चल रहे थे।</span><br />
<span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: large;">मनसुख भी पीछे-पीछे चला जा रहा है। किन्तु दृश्य उसके सामने पांच साल पहले का चलचित्र की भांति घूमने लगा। जब लखन चाचा का बेटा अपने एक और साथी के साथ बहुत खुश होकर आया और कहा की -बाबूजी हमारा फ़ौज में सलेक्शन हो गया और पत्र सामने रख दिया।मनसुख भी वही बैठा था। तीनो हम उम्र मित्र थे। साथ साथ दोनों के चयन से बहुत खुश। किन्तु एक ही बेटा और फ़ौज की नौकरी अपने हाथो मरने मरने भेज दे। अंतरात्मा काँप गई थी। कहा- बेटा अपने पास काफी जमीन है खेती कर फ़ौज-वॉज में कुछ नहीं रखा है। मनसुख ने भी लखन चाचा से तरफदारी की किन्तु वो टस से मस नहीं हुए।देश के प्रति मनसुख का लगाव कुछ कम हो ऐसा नहीं था ,किन्तु फ़ौज के लिए जो हौसला चाहिए वो नहीं था। वो खेती कर खुश था और उसका दोस्त फ़ौज में ख़ुशी देख रहा था। कई बार मनाने पर भी नहीं माने। अंततः मन मसोसकर उसका दोस्त अपने बाबूजी की बात मान गया। खेती को उन्नत विधि से करने के लिए लोन लिया। और सुखार ने सारे के सारे अरमान पर पानी फेर दिया। एक सुबह बेटे का शव घर के पीछे बगान में पेड़ से लटका पाया।सब कुछ ख़ामोशी से निपट गया। मनसुख उस वक्त भी साथ था और अपने को गैर होते और दुःख पर कुटिलता के वाण अलग से चले ।</span><br />
<span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: large;"> आज लखन चाचा के बेटे के मित्र की विदाई है।अचानक तेज बिगुल की धुन सुनाई दी। मनसुख जैसे लगा नींद से जगा। अचानक तेज उठती लपटे लगा जैसे आसमान को भी अपने में समेटने को उधृत हो रहा हो। आसमान से रिमझीम फूलो का अर्पण चिता को सम्मानित कर रहा था। बगल में ही खड़े लखन काका को मनसुख ने देखा। नजरो में भुत गतिमान लग रहा था। आँखों के किनारे आंसू की बुँदे ढलकने को तत्पर लगा।मनसुख नहीं समझ पाया ये इस शहादत का दुःख या बीते कल का पछतावा। </span></div>
</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-90089340033238912262016-09-11T09:42:00.000-07:002016-09-11T09:56:11.377-07:00अइलन बहार है ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मनसुख को लगता है जैसे किसी ने झकझोर दिया। वह अकचकाकर इधर -उधर देखने लगा। किन्तु उसे दूर खेत की मेड ठीक करते बस काका दिखाई दिए जो बाढ़ से बर्बाद हुए खेतो को सुधारने में लगे थे। मनसुख हौले से अपने आप पर मुस्कुराया -अरे वाह शायद वो सपना देख रहा था। उसने अपने राज्य में सुशासन के कई साल देख चुका था। तभी तो मनसुख वहां टिक हुआ था अपने गांव में तो इसका तो अर्थ यही था की सुशासन जारी था नहीं तो मनसुख बाकी कलुआ और बौका की तरह कमाने दिल्ली बॉमबे नहीं भाग गया होता। </span><br />
<span style="font-size: large;"> खेत में काम करते-करते थक कर वही बगल में एक पेड़ के निचे सुस्ताने को बैठ गया की आँख लग गई। देखता है बहुत बड़ा परिवर्तन लग रहा है। लोगो में असीम ख़ुशी दिखाई पर रही है। कितने वर्षो के बाद जनता का सेवक एकांतवास से दिव्यज्ञान की प्राप्ति के बाद लोगो का कल्याण हेतु चहारदीवारी को लांघ खुले आसमान में आज विचरण करने आये।मनसुख पता नहीं कैसे अपने-आपको उस भीड़ में घिरा पाया। बाहर आते ही फूल मालाओ के साथ भक्तो की कतार और महानुभाव ने दिव्य उद्घोषणा किया -परिस्थिति वश ऐसे भार बहुतो के ऊपर आ जाता है। सुशासन की जिस परिपाटी को इतने मुश्किल से खीचां है उसकी लकीर और गहरी करने में उनका योगदान का प्रयास अब होगा। उनके गुरु और नेता सर्वविदित है इसमें कहने की क्या जरुरत है। मनसुख को पता है की उसके गांव का भुवना किस गलती से आज तक जेल में है ये तो उसको भी पता नहीं है। लेकिन अभी भी है क्योंकि प्रसाशन बहुत सख्त हो रखा है ऐसा सभी कहते है। किन्तु गांव के लोग तो उसके बारे भी बात-चित करने से कतराता है पता नहीं लोग क्या समझ बैठे। किन्तु मनसुख यहाँ का नजारा देख थोड़ा हतप्रभ है कि वाकई ऐसा भी होता है। मनसुख परिस्थितवस समझदार मूर्खो की भीर या भीड़ में शामिल समझदारो के बीच फर्क कर पाने में अपने-आपको असहज पा रहा था। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> मनसुख को न्यायपालिका पर बहुत विश्वास था। आज भी है ,किन्तु समझ नहीं पा रहा था की जो पढ़ा या बड़े बूढ़ों से जाना वो क्या गलत हो रहा था। उस भीड़ में मनसुख को कही काका नहीं नजर आ रहे थे ,नहीं तो काका के सर पर अपनी जिज्ञासा का भार लाद देता। आखिर जो सभी को दिख रहा था शायद कानून आखों पर पट्टी होने के कारण नहीं देख पाया। तभी तो अपना देश महान है। आखिर जनतंत्र है ये तो मनसुख को भी पता है और ये भी जानता है की जिसके पास जन है फिर तंत्र भी तो वोही चलाएगा। मनसुख वैसे बहुत इतना सोचने को तत्पर नहीं रहता लेकिन उस स्वागत काफिले में खुद को को पाकर दिमाग में खयाल उछाल-कूद मचने लगा। कुछ दिन पहले तक मुह और नाक सूंघती उनके अधिकारी क्या ये नहीं सूंघ पा रहे थे की कि अब उनके किये धरे पर कोई बाल्टी में पानी भर तैयारी में लगा है। खैर इसमें वो क्या करते ,न्याय मूर्ति के रूप में स्थापित विद्य-गण की सेना न्याय की ही दुहाई दे, तो कौन किसके साथ न्याय कर रहा है और कौन अन्याय कहना मुश्किल। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> किन्तु नजारो से मनसुख मोहित था कितने गाडियो का काफिला उसकी यहिके से गिनती भी नहीं कर पाया ,पास आने की होड़ ऐसे की जो छू ले समझो उसको ही जन्नत मय्यस्सर हो गया। अब देखो की कैसे बहार आने वाला है अब तो लगता है की अपना ही दिन और अपना ही रात। देखे कब अब किन्तु तब तक मनसुख अपने आपको अपने गांव के छाँव में पड़ा पाया किन्तु कुछ बेवस सी आँखे उसे उस भीड़ अब भी जेहन में घूम रहा था। किन्तु काका को आते देख धीरे धीरे गुनगुनाने लगा -</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">अइलन बहार है भाई अइलन बहार है</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">कौन अब राजा यहाँ रोज तकरार है </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">चलिहे फटका अब जाने कौन जहिये </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">बीते कल के अब दिखे परिछाह है </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">अइलन बहार है भाई अइलन बहार है....... </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-28376326162724475662016-08-28T10:30:00.004-07:002016-08-29T07:25:53.493-07:00ककरा के घरे भड़े आयलहँ रे बदरवा....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> टिप -टिप बर्षा पानी , अगर आप कही सोच रहे कि मनसुख कोई गीत नहीं गा रहा है तो ऐसा कुछ नहीं । वो तो बस अपने घर के छप्पर से टपकते बर्षा के बूंदो को देखते हुए ऊंट की तरह गर्दन खिड़की से बहार कर आसमान को निहारने की कोसिस में था। काफी समय के बाद आज बदरा रानी कुछ कम छमक रही थी ,नहीं तो कुछ दिनों से ऐसा लग रहा था की इंद्र के कोप से कही दुखी हो सारे के सारे बदरा कही धरती पर तो बसने के फ़िराक में तो नहीं है। खैर मनसुख को ये समय कुछ गुनगुनाने का लग रहा था। आखिर इसी लिए तो दुख और सुख सभी के राग बने है। वैसे कोई वियोगी भाव मनसुख के मन पर हावी नहीं हो पाते और गीत उसके फितरत का भाग। बाकि वो मेघ-मल्हार है आ कोनो फ़िल्मी गीत उससे उसको कोनो मतलब नहीं है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> सो अब वो भी धीरे से बुदबुदाने लगा टिप टिप बरसा पानी पानी में आग लगाए। अब पानी में आग लगे न लगे मनसुख को पेट में भूख की आग के धुएं अवश्य उठने लगे थे। कल दोपहरिया में जो खाया अभी तक उसके बाद उसे कुछ नसीब नहीं हुआ। काका तो न जाने कबे विहाने उठ के बोरिया का बरसाती बना के छप-छप निकल गए कह कर कि आज कुछ राहत सामान बंटे वाला है सो लेके आते है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> मनसुख के गांव की नियति है बाढ़ ,कोई पहली बार नहीं आया है ,सालो से वह अभ्यस्त है ,इन हालातो का। हर साल इस समय में नेता सब आते और वादा करते की अगले बरस अब इसका मुख मोड़ देंगे। किन्तु मनसुख काफी समझदार था ,आखिर गांव के सरकारी स्कुल से आठवी पास जो था। मनसुख ऐसा नहीं है की हर बात को लेकर बस सरकार को कोसने लगे।अब सरकार के बस में तो नहीं है की वो बाढ़ को यह कहकर रोक दे की इसके लिए परमिशन नहीं लिए। लेकिन मनसुख को ये भी पता है की कई दफा उसके गांव में बाढ़ , रौदी (सूखा) के दिनों में भी सरकारी फाइलों में बहा है। जैसे बाढ़ खेतो के लिए उपजाऊ मिटटी लाती है सरकारी बाबुओ के लिए भी अपनी उर्वरकता को सींचने का भरपूर मौका देती है। सो मनसुख खेत के बारे में सोच कर खुश था ,बाबुओ के विषय में सोचने के लिए तो सरकार है ही। किन्तु आज पेट की आग कुछ ज्यादा ही परेशान कर रहा था। करता भी क्या उसकी मेहरारू भी जो बच्चो के साथ मायके गई थी ,बाढ़ में फसी सो अभी तक लौटी नहीं। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> अब काका आये तभिये कुछ खाने पीने का बंदोबस्त हो। कल राते में सोते समय जब मेघ घुघुआ रहा था ,कोने में छप्पर कि छाती चीरकर एक धार कोने में गिरने लगा तो काका बोले -</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मनसुखवा काले इस धार को मोड़ लेना ,नहीं तो पता चलेगा हम दोनों एकरे साथ तर गए। मनसुख बोला -हाँ काका एक पुराना प्लास्टिक है कल बिहाने बांध देंगे। सो मनसुख सोचा अब जब तक काका नहीं आते तब तक ई काम निपटा ले। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> ऐसे गांव में चहल-पहल कुछ बढ़ने लगा था।आखिर दो-तीन दिनों के बाद आसमान में कब्ज़ा जमाय कालिख कुछ -कुछ छटने लगा था। कुछ लोग गर्दन उठा -उठा कर सूर्य देवता को तरस भरी आँखों से ढूंढ रहा थे तो कोई अपने खेतो के समंदर रूप पर दुखी या खुश था चेहरे कुछ गवाही देने को तैयार नहीं था।कुछ तो बाकायदा खेतो और तालाबो के बीच बहती उलटी धार को देख मन ही मन खुश हो रहा था शायद आज माँछ -भात का भोग लग जाए। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"> मनसुख कोई मेघदूत तो नहीं पढ़ा था,लेकिन सुना अवश्य था।उसके मन में विचार उठा कि काश ये भागते मेघ हमारे मेहरारू को खबर कर देता कि -तुम्हारी याद सताती है , जिया में आग लगाती है।किन्तु मेघ जाने कहाँ नजर फेरे सोचते ही विचार गर्म तवा पर भाप की तरह उड़ गया। और कहता भी कैसे भागते मेघ ऐसे लग रहे थे जैसे उसने ओवर टाइम कर रखा हो और घर जाने की जल्दी में है। सो मनसुख के मन में उठे विचार उस तक शायद नहीं पहुच पाए। पिछले साल से ये प्यासी धरती की सूखा के कारण कोई फसल नहीं हो पाया अबकी का इसको पानी से लबालब धरती की पानी से लहूलुहान धरती कहे -कुछ कुछ ख्याल मनसुख आते ही रहते है सो अब यही सोचने लगा। खैर मनसुख को किसी से कोई शिकायत तो रहता नहीं सो वो काका के कहे अनुसार छप्पर पर बैठ कर अब प्लास्टिक को उससे ढकने में व्यस्त हो गया। </span><br />
<span style="font-size: large;"> अब काम पूरा कर मनसुख अनमने सा नजर उठाया तो देखा क़ि काका कंधे पर बोरा में कुछ भरे बढे आ रहे है। टिप-टिप बारिस तो चल ही रहा था किन्तु मनसुख काका को देखते जैसे फिर गुनगुनाने लगा और जल्दी -जल्दी छत पर से निचे उतरने को हुआ की काका ओहि से चिल्लाये -अरे मनसुखवा आराम से नीचे फिसलन हौ ,गिरले से बस .... </span><br />
<span style="font-size: large;"> खैर मनसुख अपने ही अंदाज में उतारकर निचे आया तब तक काका भी आँगन में पहुच गए और सामान से लदा बोरा कंधे से निचे रखने को हुआ कि मनसुख बोल पड़ा - </span><span style="font-size: large;">ए काका भीतर आ जा अबीहो बारिस टिपिर -टिपिर है। </span><br />
<span style="font-size: large;">तो ले भितरे रख न अब सब काका करतौ का -रोष भरे स्वर अपनापन को निहित कर रखा था। </span><br />
<span style="font-size: large;">मनसुख चुपचाप सामान लेकर भीतर रखकर बोला -बड़ा देर लगा देले काका। </span><br />
<span style="font-size: large;">न वहां तो मीना बाजार लगे रहे सो वोही देख रहे थे काका के चेहरे पर भूख की कुछ तुनकी छा गई। </span><br />
<span style="font-size: large;">न काका हमरे कहे के मतलब रहे की लगता है वोहाँ भीड़ बहुत रहे मनसुख बात बदल दिया। </span><br />
<span style="font-size: large;">अब इतना दिन से देखते-देखते तो आज सामान बटले ,कोनो कीर्तन तो रहे नहीं कि लोग भगवान् के हजारी लगा के निकल जाय वहां प्रसाद रहे जब तक नहीं मिले लोग आवे कैसे । सो सब कोई आइले रहे। और अबे काल में अपन खद्दर वाला जकरा भोट दिए , न जाने हमारा सब के देखे आइल रहे की ई नजारा के देखे ,फोटो खिचबे में लगले रहे। के काका उ नेतवा-मनसुख बोला </span><br />
<span style="font-size: large;">हाँ रे ओही ,रास्ते में जे गांव रहे वहां नेताजी हाल-चाल पूछे आयले रहे। तो ओकरे सुने में तनी रुके रहे। </span><span style="font-size: large;">का बोले रहे थे मनसुख वाकिफ था फिर भी पूछा। </span><span style="font-size: large;"> का बोलेगा ओहि सब जे चुनाव के समय में बोलत रहे। बोल रहे थे गंगा मैया दर्शन देवे घरे पर आई है। बाकी तो हर बार उ का कहत हाउ आयोग ओइसने कुछ और बनला से अब अगला साल से कोनो परेशानी ना होतौ ,से कहत रहे। </span><br />
<span style="font-size: large;">मनसुख इन बातों से अब अभ्यस्त था सो काका की बातो पर ध्यान दिए बिना खोला की देखे किया-किया सरकार ने दिया है। बोरे में चुड़ा और चावल की पोटली बनी थी। </span><br />
<span style="font-size: large;">ए काका ई का मिला है -मनसुख बोला </span><br />
<span style="font-size: large;">जो तू देख रहा है वोही है और का। </span><br />
<span style="font-size: large;">न काका हमर मतलब था की राहत के नाम पर बस इतना सा ही- मनसुख को कुछ खींझ हुआ। </span><br />
<span style="font-size: large;">तो इतना का कम लग रहा है। वो तो बड़ा भलमानुस बाबु है की उतनो दे देलौ। </span><br />
<span style="font-size: large;">कुछौ कह लेकिन सब बड़ा ख़ुशी ख़ुशी सामान सब बाटत रहे। न तो ई बाबू सब आज कल कौनो काम करे चाहे है। </span><br />
<span style="font-size: large;">लेकिन काका हमारा सब के परिवार के हिसाब से कितने मिले के रहे। </span><br />
<span style="font-size: large;">अब हम उहाँ सामान ले की हिसाब-किताब करे -काका बोले उ बाबु और कहत रहे फेर कुछ दिन बाद सामान आएगा तो बाटेंगे।</span><br />
<span style="font-size: large;">मनसुख को सबके ख़ुशी-ख़ुशी सामान बाटने वाली बात से बस काका कि तरफ देखता रहा ,आखिर काका है भी उसी पीढ़ी के कि जो ऐसा सोच दिमाग में भी नहीं आते। किन्तु मनसुख दुनियादारी तो सिख चूका है और उसे समझते देर नहीं लगा कि वो ख़ुशी -ख़ुशी बांटे ऐसा भी कही होता है यहाँ ,हाँ वो बाँट-बाँट कर अवश्य खुश हो रहे होंगे कि ऐसे बारिश हर साल आये और इनके छीटे उसके भी ऊपर पड़ते रहे। </span><br />
<span style="font-size: large;">किन्तु मनसुख कुछ न बोल बस काका से धीरे से कहा - काका जाओ अब पाव हाथ धोबे आओ जो है उसको ही भोग लगाते है। साथ ही साथ गुनगुना रहा था- </span><br />
<span style="font-size: large;"> ककरा के घरे भड़े आयलहँ रे बदरवा </span><br />
<span style="font-size: large;"> जोगीया के वेश में अब घूमे है डकैतवा </span><br />
<span style="font-size: large;"> काहे नहीं जा का बसे वोहाँ पर ए बदरा </span><br />
<span style="font-size: large;"> सुख गइले जकराअंखिया में पानी के कतरा।। </span><br />
<span style="font-size: large;"> ककरा के घरे भड़े आयलहँ रे बदरवा।। ...... .</span></div>
</div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4685171362943813618.post-65401112821651711812016-08-25T09:58:00.003-07:002016-08-26T02:45:23.355-07:00बच गेले तो जेल और ऊपर गइले तो चेक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<span style="font-size: large;">मनसुख बहुत परेशान है ,समझ नहीं आ रहा ये का हो रहा है , भला ये भी कोई बात हुई ऐसे जिंदगी भी कोई जिंदगी है। का दे रही ई सरकार हमको। ऐसा कही होता है का।पहले तो खुद हि बाँट -बाँट के भोट लिया और अब ओहि पर पहरेदार बिठा दिया।और कुछ सोचता तब तक काका ने आवाज दिया -</span><br />
<span style="font-size: large;">का रे मंसुखवा वहां अकेले -अकेले किससे बतिया रहे हो।</span><br />
<span style="font-size: large;">केहुओ से न काका- मनसुख सकपकाया जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो। न काका बस ऐसे ही सोच रहे थे ,धीरे से कहा।</span><br />
<span style="font-size: large;">ऐसे ही का रे ,मनसुख के आखो का दर्द काका पढ़ने कि कोशिस कर रहे थे।</span><br />
<span style="font-size: large;">बस काका हम तो ऐसे ही सोच रहे थे की अब आगे क्या होगा।</span><br />
<span style="font-size: large;">अरे आगे क्या होगा से क्या मतलब। जैसे हर बार होता आया वैसे ही होगा ,बाढ़ अइबे करेगा ,सूखा सुखइबे करेगी ,बचा-खुचा से जैसे चलता है चलबे करेगा और का।</span><br />
<span style="font-size: large;">न काका,उ सब तो हमहू समझते है। मतलब काका हम कह रहे थे कि जैसे लगता है रौनक अब नहीं रहा अब लौटबो करेगा कि नहीं।</span><br />
<span style="font-size: large;">अरे मचन्ठा कौन रौनकबा की बात कर रहे हो। कहा गया की नहीं लौटेगा।</span><br />
<span style="font-size: large;"> न काका हमारे कहने का मतलब है की अब कोनो ख़ुशी -वुशी जब आबेगी तो उतना मजा नहीं आएगा।</span><br />
<span style="font-size: large;">कौन खुशिया आ रही रे तू तो बताया नहीं और कब आबे वाली है। काका की झुर्रिया पूछते ही चहक कर चेहरे पर छा गई।</span><br />
<span style="font-size: large;">ओहो ,न काका तुहु समझत नहीं हो ,हमार कहे के मतलब है कि शादी वियाह में जब तक उ ना हो न. तो मजा नहीं आबत है। अरे मंसुखवा ई का बोल रहा तू ,का फेर से फेरा के चक्कर में है का। काका अपनी त्योंरि को चढाने का असफल प्रयास कर रहे थे।</span><br />
<span style="font-size: large;">अरे नहीं काका तुम्हो न, का हम बोले- रहे दो अब। तुम्हार उम्रे नहीं रहा तो हम का बोले चाह रहे है और तुम हो की का समझ रहे हो काहे से समझोगे। रहे दो चलो खेते पे चले। न -न बोल न का तोहरे मन में चल रहा है-काका अब खुशामदी स्वर में धीरे से मनसुख से बोले।</span><br />
<span style="font-size: large;">न काका हम कह रहे थे की अबकी बार जो होली-ओली आबेगी उसमे मजा नहीं आएगा। लगता है बिलकुल फीके -फीके ही जायेगा।</span><br />
<span style="font-size: large;">अब काका का दिमाग प्रशासन की सुस्त गति से चल कर कुछ-कुछ समझने लगा था । लग रहा था जैसे-जैसे बात काका समझ रहे थे दिल की टिस चहरे पर उठ रही थी। किन्तु फिर भी बोले -का रे अभिये फगुआ का कहा से आ गया। तबहो काहे फीका होगा रे होली ,खूब जम के फगुआ और चैती गाबे जायेगा और होली के भोरे से बस छक के - किन्तु उसके आगे लगा जैसे काका को झटका लगा और चुप। यहाँ के दरोगा सस्पेंड हो गया कलही तो मनसुख बताया था।</span><br />
<span style="font-size: large;">किन्तु मनसुख को काका के गुजरे अनुभव पर कुछ भरोसा जगा और मनसुख थोड़ा चहक के पूछा कैसे छक के काका। मनसुख सोच रहा था जैसे काका को कोई जुगार लग गया हो। आखिर जुगार से यहाँ का नहीं होता और अब तक सारे काम तो जुगाड़े पर हुआ है चाहे इंदरा आवास हो या मनेरगा कि मजदूरी। जुगारपूर्ण देश में इस कला में निपुण लोगो के लिए कुछ भी असंभव नहीं है और ये कोई विशेष बात तो नहीं।</span><br />
<span style="font-size: large;">तब तक काका खजूर पर लटके डाबा को देखकर बुदबुदाए -रहे दे मनसुख अब ऐसे हि फगुआ मनतौ,अब ओकरा से ध्यान हटा ले , बचेले से कुछो न मिले वाला है, बच गेले तो जेल और ऊपर गइले तो चेक।</span><br />
<span style="font-size: large;">मनसुख बुदबुदाया जैसे होली का जोगीरा गा रहा हो -</span><br />
<span style="font-size: large;">वाह सरकार - वाह सरकार</span><br />
<span style="font-size: large;">चौक चौराहा द्वारे-द्वारे भठ्ठी सब खुलबा दियो</span><br />
<span style="font-size: large;">दिए जहर कि तुम्ही पुरिया अब इंजेक्शन लगबए रियो</span><br />
<span style="font-size: large;">वाह सरकार -वाह सरकार।।</span></div>
कौशल लालhttp://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.com0