Tuesday 19 June 2018

...ओ मेरी महबूबा...।।

मनसुख आज तैश में था। गर्मी की उफान उसके चेहरे पर उभर उभर कर आने वाले पसीनो के बूंदों में झलक रहा था। वह कुट्टी काटने वाली मशीन को जोर जोर से घुमा रहा था। बीच बीच मे वह घास की बंडल मशीन में डालते समय रह रह कर पसीने पोछता और गुनगुनाता-- महबूबा...महबूबा...ओ मेरी महबूबा
काका वही बगल में पेड़ की छाया में दोपहरी से लड़ने के लिए लेटे हुए है।
काका-का रे मनसुख ई मेहरारू के काहे इस दोपहरिया में याद कर रहा है...
मनसुख झेप गया। न काका वो तो हम महबूबा के बात कर रहे है।
काका- अरे अब कोनो दोसर मेहरारू तो नही ले आये।
मनसुख- का काका तू भी बुराड़ी में अंट-शंट बकते रहते हो। तुमको कुछो देश दुनिया का पता रहेगा तब न समझोगे।
काका- का रे अब ऐसा का हो गया
मनसुख- कश्मीर में महबूबा की सरकार गिर गई है तुमको कुछो पता है।
काका के चेहरे पर मंद मुस्कुराहट उभर गया और बोला- उ तो हम पहले ही बोले थे कि ई साँप-छुछुन्दर एके बिल में कब तक रहेगा। तब तो तू बाद खुश होकर बता रहा था कि अब कश्मीर फिर से स्वर्ग बन जायेगा।ई सरकार बड़ा सोच समझ के कुछ करती है। फिर का हुआ अचानक की भाग गए कश्मीर से।
मनसुख- देखो काका ई सब राजनीति की बात है...तुमको समझ नही आवेगा।
काका-यही तो हम भी कह रहे है कि ई सब राजनीति की बात है तू नाहक खुश हो रहा है।तू ही बता तू काहे खुश है?
मनसुख-देखो काका अब कश्मीर की हालत से समझौता नही कर सकते। वहाँ अब स्थिति ज्यादा खराब हो गई है।
काका-तो अब तक का खाली महबूबा...महबूबा कर के झाल बजा रहे थे। किसने रोका था कश्मीर को सुधारने से।अब तक तो लगता है यही गा रहे थे...महबूबा मेरे जो तू नही तो कुछ भी नही है...जो तू है तो कश्मीर कितनी हँसी है.....और अब अचानक..।
मनसुख-काका ई कोनो बिहार की राजनीति नही है जो तुमको सीधे-सीधे समझ मे आवेगा।यहां बहुत कुछो सोचना पड़ता है। बगले में पाकिस्तान मुँह बाये खड़ा है। तुम का समझोगे..?
काका- बेटा ई पाकिस्तान की झुंझना सुनते - सुनते बाल सफेद हो गए और तुमरो सरकार को देख लिया। ना कुछो मिले तो बस पाकिस्तान और धर्म खतरे में है का ढोल पिटने लगो। तुम कह रहे थे न देखना अब कैसे उग्रवादी सब दुबक जायेगे लेकिन उ सब तो वैसे निकल रहे है कि जैसे कुकुमुता का छता निकल रहा है। फिर कुचलते काहे नही। बस तुम सब ढिढोरा पीटते रहो।इससे बढ़िया तो मौनी बाबा थे कुछ तो करते होंगे बेशक कहते नही....।
मनसुख-काका तुम का समझोगे सब तो वही सब का किया धरा है।
काका-तो इनको मौका भी तो इसी लिए दिया था।अब न कुछ कर पाए तो बस बहाने बनाओ..।
मनसुख- काका तुम कुछ भी कह लो लेकिन ई जो कुछ भी करते है सोच समझ कर करते है, देशहित पर ये समझौता नही कर सकते।
काका-बेटा तुम सब यही सोचकर खुश रहो...आखिर घुट्टी जो पी रखे हो...यह तो सही है कि सोच समझ कर करते है ,लेकिन इसमें हित किसका है यह तो समय ही बताएगा। लेकिन सब तो यही कहेंगे इतने चौड़े सीने वाले को महबूबा ने पटकनी दे दी और ये पूंछ दबा कर कश्मीर से भाग गए लेकिन तुम जैसे मूढ़ तो बस अपने नशा में चूर रहो...।
मनसुख को काका की इन बातों का जैसे कोई असर नही हो रहा और वह अपने धुन में गुनगुना रहा है--महबूबा....महबूबा....ओ मेरी महबूबा...।।

आदिपुरुष...!!

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