फिर भी वो दांत निपोडे हँसता रहा...ही..ही..ही..।
कल्ले में एक ओऱ दबाये पान मसाला के प्रोडक्ट को थूक संग समिश्रित करता, गर्दन को धीरे से घुमा कर...आक थू....। उत्पाद के रस निचोड़ने के बाद त्याज्य पदार्थ उत्सर्जित कर दिया।
मनसुख को कदम पीछे हटना पर गया...।
उसके बत्तीसी अब भी सतरंगी छटा बिखेर रहा था। जिसपर कालाधन के साथ साथ अन्य रंगों ने कब्ज़ा जमा लिया है। अब भी यूँ ही दांत निपोडे हुआ है।
भैया आप तो बस हमें ही टोकते हो....का हो गया जो हम थोड़ी सी अपने मन की बात कह गए। सब तो अपने मन की बात कह रहे है...उन्हें तो कोई कुछ नहीं कहता। हमारे मन में तो बस इतनी बात है कि अब भावनाएं बहुत कम बच रही है सो काहे सब भावना से खेलते रहते है। और भौया सच कहूं तो कुछ काम धंधा रहे तब न ....अब खली बैठे है सो थोड़ा हम भी अपने मन की बात कर लेते है...थोड़ा टाइम पास हो जाता है...ही..ही...ही...। इस्टमेनकलर में दांत फिर से उसने दिखा दिया।
देखो बेकार की बातों का कोई मतलब तोड़े ही न है...। बात मतलब की करो न....।
उसने फिर केसरिया सुपारी के दो छोटे टुकड़े को जैसे अपना काम निकल जाने के बाद पार्टी साइड कर देती है, बिलकुल उसी अंदाज में बाहर फेंक कर बोला-
यहाँ कौन मतलब की बात कर रहा है...। सब तो अपने ही मन की बात कर रहे है।तुम्ही बताओ भैया.....अब आलू से सोना निकलेगा इसमें का मतलब है ई का मन का बात नहीं हुआ।
अरे कहा कि बात कहाँ जोर रहे हो। मनसुख उसकी बातों को समझने की कोशिश कर रहा ।
अच्छा तो ई जो भंसाली साहब सेंसर बोर्ड से पहले "बुध्धु बॉक्स" के संपादक के पास पहुच गए ई का उनके मन का बात नहीं हुआ। हम तो पहले काहे थे की हमलोगों को पाहिले दिखा दो सो तो माना नहीं ।
लेकिन ये भी तो हो सकता है कि वो अपनी फिल्म के प्रोमोसन के लिए ई सब कर रहा है....।
तो का इससे हम सबका प्रमोसन नहीं हो रहा है...। हौले से मुस्कुराकर बोला । इस बार दांत पर होठो का बुरका लग गया।
और भैया तुम नाहक काहे परेशान हो रहे हो । लोकतंत्र है....। जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए किया जाना है। देखो ऊपर से नीचे तक सब अपनी मन की बात सुना रहे है। तुम भी सुना दो अपने मन की और क्या......ही...ही....ही....।
मनसुख उसकी थ्योरी को समझने के प्रयास में सर खुजाने लगा।
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