Monday 26 September 2016

टीवी और समाचार

                              
              बहुत दिनों बाद आज मनसुख खुश नजर आ रहा था। शाम को सब काम निपटाकर वही आँगन में एक  किनारे नीचे बैठा हुआ था।बगल में लालटेन की लौ गांव के किस्मत पर कब्जे जमाये काली रात को ललकारने में व्यस्त थी। सदैव के भांति मनसुख के चेहरे पर कुछ संतोष नजर आ रहा था। काका की नजर घर की देहरी पर बैठे-बैठे मनसुख की ओर गया।  काका मसुख को टोके बिना नहीं रह सके।
काका -का रे मनसुख का बात है बहुत चेहरा ख़िलल हौ आज।
मनसुख -है काका बाते कुछ अइसन है। लगता है काका तोहरे ध्यान वो  तरफ नहीं गया है। 
काका- का तरफ हम नहीं समझे
मनसुख -ऊपर देख काका कैसे झिलमिला रहा है।
काका ने नजर मनसुख के इशारे के दिशा में उठाया। देखा की आज काफी दिनों बाद कृशकाय विजली का खंभा जो बाढ़ की बदनीयत से आपने आपको अब तक बचाया हुआ था। उसके ऊपर मुकुट रूपी सुशोभित बल्ब कुपोषित बच्चे की तरह अपने जीवन से जैसे संघर्ष कर आज लौटा है लग रहा था। आश्चर्यजनक रूप से आज जैसे उस बिजली के तारो में आत्मा के प्रवेश को इंगित कर रहा था। गांव की सेहत को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,इसलिए लालटेन अपना दैनिक कर्तव्य निभा रही थी। फिर भी बिजली रानी बीच -बीच अपने आपको को निखार रही थी।  मनसुख और काका अपने-अपने कारण से मोहित लग रहे थे। 
                मनसुख के गांव में बीजली रानी कब कदम रखा ये तो ठीक-ठीक मनसुख को भी ज्ञात नहीं था। शायद देश के  विकास प्रवाह में मनसुख के गांव भी आया ,लेकिन वो प्रवाह निखरा नहीं और अभी तक अपने उसी रूप में है।  वह बचपन से ही वो खम्भे और उसपर लटका तार देख रहा था। लेकिन इस ससुराल में बिजली रानी जैसे खुश नहीं थी और जाने कब वो मायके भाग जाती। बड़े बाबू लोग कुछ जा कर मिन्नतें करते तो वो बीच बीच में वो झलक दिखलाने आ जाती थी। आज फिर से एक बार काफी दिनों के बाद वो अपने रूप का दर्शन गांव वालो को दी है और मनसुख उसे निहारने में व्यस्त है।  काका भी  उसके इस सम्मोहित रूप से नजर नहीं हटा सके। बिजली की स्थिति तो वही रहा लेकिन समय के प्रवाह ने घर में टीवी की उपस्थिति  को केबल के जंजालो  से अवश्य लपेट दिया। जिसके तार का एक कोना किसी तरह मनसुख भी अपने घर में  ले आया। बिजली की क्षमता का सभी को भान था इसलिए उसकी तंदुरस्ती के लिए मनसुख ने एक स्टेप्लाइजर भी ले रखा था। मनसुख के पास एक छोटी सी टीवी भी है। आज मनसुख खुश है की बहुत दिनों के बाद उसके पिटारे का ढक्कन खुलेगा।
                        मनसुख और काका खाने के बाद अपने एक कोठरी जो की बगल में था उसी में टीवी लगा था।  काका वैसे तो जल्दी सो जाते है लेकिन आज बहुत दिनों के बाद टीवी देखने का लोभ नहीं छोड़ पाए।
काका- लगा जल्दी चालू कर , बहुत दिन हो गलौ देखे बिना।
मनसुख -का देखे के है काका 
काका - का देखबौ समाचार लगा दे। 
               मनसुख ने एक समाचार चैनल लगाया तो उसके पर एंकर  के साथ साथ उपस्थित मेहमान भारत और पाकिस्तान के बिच युद्ध छेड़ बैठे थे। लगता था चैनलो से मिसाइल निकल कर सीधा पाकिस्तान पर ही गिरेगा। उनके चीखने चिल्लाने के तरीके से काका कुछ चिढ गए। और बोले ई का लगा दिया रे ई सब तो लग रहा है अपने में लड़ बैठेगा तो खाक पाकिस्तान से लड़ेगा। भगा एकराके। मनसुख  ने बटन दबाया। आगे खूबसूरत सी महिला एक समाचार चैनल पर अद्भुत ,अविश्वश्नीय,कुछ बाते बता रही थी। काका कुछ तुनके और कहा -अरे समाचार वाला चैनल नहीं है का। मनसुख -वही है काका। फिर ई का दिखा रहा है की ईसको बिजली का झटका नहीं लगता। यहवा अपने पोलवा के तार  पर लटका दे तब पता चल जायेगा की का होता है। चल कौनो और लगा। मनसुख बेचारा फिर से बटन टीपा। उसपर एंकर  बता रहे थे की इस जगह पर अश्व्थामा अभी भी आते है। नौ सो साल की गुथ्थिया सुलझाने में वह लगा हुआ था। काका चिढ से गए अरे इस सब कोनो समाचार है का। ई कहानी तो हमहू बचपन से सुनते आ रहे है। कही समाचार कुछ अपने देश प्रदेश के बारे में बता रहा है तो लगा। नहीं तो रहे दे। मनसुख बेचारा बदल -बदल कर देखता गया कहीं भारत भाग्य विधाता तो कहीं भारतवर्ष के नाम पर ऐतिहासिक समाचार पड़ोसे जा रहे है। अब काका से नहीं रहा गया बोले हम चलते  ई बोकवन के बकवास तुम्ही सुनो और देखो ,इससे अच्छा तो अपन रेडियो है। इहो बिजली आके बस नींदे ख़राब की है और काका सोने चल दिए। 
            मनसुख मन ही मन खुश हो गया। उसको अब तक जानकारी हो गया था की अब टीवी पर सास बहु की कहानी ही समाचार बन आता है। इसमें कुछो नहीं है है ,अब आराम से कोई फिल्म लगाते है और चैनल बदला उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा फिल्म नदिया के पार आ रहा था और "कौन दिशा में ले के चले रे बटोहिया गीत चल रहा था। मनसुख भी साथ ही साथ गुनगुनाने लगा और उसी में खो गया।  

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