मनसुख बहुत परेशान है ,समझ नहीं आ रहा ये का हो रहा है , भला ये भी कोई बात हुई ऐसे जिंदगी भी कोई जिंदगी है। का दे रही ई सरकार हमको। ऐसा कही होता है का।पहले तो खुद हि बाँट -बाँट के भोट लिया और अब ओहि पर पहरेदार बिठा दिया।और कुछ सोचता तब तक काका ने आवाज दिया -
का रे मंसुखवा वहां अकेले -अकेले किससे बतिया रहे हो।
केहुओ से न काका- मनसुख सकपकाया जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो। न काका बस ऐसे ही सोच रहे थे ,धीरे से कहा।
ऐसे ही का रे ,मनसुख के आखो का दर्द काका पढ़ने कि कोशिस कर रहे थे।
बस काका हम तो ऐसे ही सोच रहे थे की अब आगे क्या होगा।
अरे आगे क्या होगा से क्या मतलब। जैसे हर बार होता आया वैसे ही होगा ,बाढ़ अइबे करेगा ,सूखा सुखइबे करेगी ,बचा-खुचा से जैसे चलता है चलबे करेगा और का।
न काका,उ सब तो हमहू समझते है। मतलब काका हम कह रहे थे कि जैसे लगता है रौनक अब नहीं रहा अब लौटबो करेगा कि नहीं।
अरे मचन्ठा कौन रौनकबा की बात कर रहे हो। कहा गया की नहीं लौटेगा।
न काका हमारे कहने का मतलब है की अब कोनो ख़ुशी -वुशी जब आबेगी तो उतना मजा नहीं आएगा।
कौन खुशिया आ रही रे तू तो बताया नहीं और कब आबे वाली है। काका की झुर्रिया पूछते ही चहक कर चेहरे पर छा गई।
ओहो ,न काका तुहु समझत नहीं हो ,हमार कहे के मतलब है कि शादी वियाह में जब तक उ ना हो न. तो मजा नहीं आबत है। अरे मंसुखवा ई का बोल रहा तू ,का फेर से फेरा के चक्कर में है का। काका अपनी त्योंरि को चढाने का असफल प्रयास कर रहे थे।
अरे नहीं काका तुम्हो न, का हम बोले- रहे दो अब। तुम्हार उम्रे नहीं रहा तो हम का बोले चाह रहे है और तुम हो की का समझ रहे हो काहे से समझोगे। रहे दो चलो खेते पे चले। न -न बोल न का तोहरे मन में चल रहा है-काका अब खुशामदी स्वर में धीरे से मनसुख से बोले।
न काका हम कह रहे थे की अबकी बार जो होली-ओली आबेगी उसमे मजा नहीं आएगा। लगता है बिलकुल फीके -फीके ही जायेगा।
अब काका का दिमाग प्रशासन की सुस्त गति से चल कर कुछ-कुछ समझने लगा था । लग रहा था जैसे-जैसे बात काका समझ रहे थे दिल की टिस चहरे पर उठ रही थी। किन्तु फिर भी बोले -का रे अभिये फगुआ का कहा से आ गया। तबहो काहे फीका होगा रे होली ,खूब जम के फगुआ और चैती गाबे जायेगा और होली के भोरे से बस छक के - किन्तु उसके आगे लगा जैसे काका को झटका लगा और चुप। यहाँ के दरोगा सस्पेंड हो गया कलही तो मनसुख बताया था।
किन्तु मनसुख को काका के गुजरे अनुभव पर कुछ भरोसा जगा और मनसुख थोड़ा चहक के पूछा कैसे छक के काका। मनसुख सोच रहा था जैसे काका को कोई जुगार लग गया हो। आखिर जुगार से यहाँ का नहीं होता और अब तक सारे काम तो जुगाड़े पर हुआ है चाहे इंदरा आवास हो या मनेरगा कि मजदूरी। जुगारपूर्ण देश में इस कला में निपुण लोगो के लिए कुछ भी असंभव नहीं है और ये कोई विशेष बात तो नहीं।
तब तक काका खजूर पर लटके डाबा को देखकर बुदबुदाए -रहे दे मनसुख अब ऐसे हि फगुआ मनतौ,अब ओकरा से ध्यान हटा ले , बचेले से कुछो न मिले वाला है, बच गेले तो जेल और ऊपर गइले तो चेक।
मनसुख बुदबुदाया जैसे होली का जोगीरा गा रहा हो -
वाह सरकार - वाह सरकार
चौक चौराहा द्वारे-द्वारे भठ्ठी सब खुलबा दियो
दिए जहर कि तुम्ही पुरिया अब इंजेक्शन लगबए रियो
वाह सरकार -वाह सरकार।।
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